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________________ १४८ भाव-संग्रह अर्थ- सात उच्छवागों का एक स्तोक होता है । सात स्तोकों का एक लब होता है। साडे अडतीस लबों की एक नाली है और दो नालियों का एक मुहूर्त होता है। तीस मुहत्तो दिवसो पणवह दिवसेहि होइ पक्वं तु | विहि पक्षेहि य मासो रिउ एका वेसि मासेहिं ।। त्रिशन्मुहूर्त विवसं पंच दशदिवसः भवति पक्षस्तु । द्वाभ्यां पक्षाभ्यां च मासः ऋतुरेको द्वाभ्यां मासाभ्याम् ।३१४॥ अर्थ- तीस मुहुर्त का एक दिन होता है, पंद्रह दिन का एक पक्ष होता है दो पक्ष का एक महीना होता है और दो महीने की एक ऋतु होती है। रिज तिय भूयं अयणं अयण जुवलेण होइ वरिसोक्को । इय ववहारो उत्तो कमेण विद्धि गओ विविहो ।। ऋतु त्रिभूतमयनं अयन युगलेन भवति वर्ष एकः । एष व्यवहार उक्तः क्रमेण वृद्धिंगतो विविधः ॥ ३१५ ॥ अर्थ- तीन ऋतु का एक अयन होता है और दो अयनों का एक वर्ष होता है । इस प्रकार अनुक्रम से वृद्धि को प्राप्त हुआ अनेक प्रकार का व्यवहार काल कहा है। एवं तु बम्बकमक जिणेहि पंचस्थिकाइयं मणियं । धज्जिय कायं कालो कालस्स पएसय पत्थि ।। एतत्तु द्रव्य पदकं जिनःपंचास्ति कायिक भणितम् । वर्जयित्वा कायं कालं कालस्य प्रदेशो नास्ति ।। ३१६ ।। अर्थ- इस प्रकार भगवान जिनेद्रदेव ने छह द्रव्यों का स्वरुप कहा है । इम छहां द्रव्यों मे से काल को छोड़कर शेष पांच द्रव्य अस्तिकाय कहलाते है । जिनकी ससा हो उनको अस्ति कहते है और जो काय वा शरीर के समान अनेक प्रदेश वाले हो उसकी काय कहते है । जीव गुद्गल धर्भ अधर्म आकाश ये पांचों द्रव्य बहु प्रदेशी है इसलिये अस्तिकाय कहलाते है। काल के प्रदेश नहीं है वह एक ही प्रदेश है इसलिय
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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