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भाव-संग्रह
अर्थ- ग्रह ससारी जीव इस प्रकार एकेन्द्रिय दोइन्द्रिय तेइन्द्रिय चौइन्द्रिय पंचेन्द्रिय पर्याप्तक अपर्याप्तक आदि चौरासी लाख योनियों में परिभ्रमण करता हुआ अनेक प्रकार के सुख और दुःख भोगता रहता है ।
इस प्रकार अत्यंत संक्षेप से जीव तत्त्व का निरूपण किया ।
आगे अजीव पदार्थों का कहते है ।
होंति अजीव दुबिहा रूवा हवा य रूवि चउ भेया । खंच तहा देसो खंधपदेसो य परमाणु ॥
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भवन्ति अजीवा द्विविधा रूपरूपाश्च रूपिणचतुर्भेदः । Fare तथादेशः स्कंध प्रदेशावच परमाणुः || ३०३ ||
अर्थ - अजीव पदार्थों के दो भेद है एक रूपी और दूसरा अरूपी उनमें रूपी पदार्थ एक पुद्गल है शेष सब अरूपी है। रूषी पुग्दल द्रव्य के भी दो भेद है एक परमाण और दूसरा स्कंध । स्कंध के फिर तीन भेद होते है। स्कंध स्कंध देश और स्कंधप्रदेश | पुद्गलका सबसे छोटा भाग परमाण कहलाता है, उसके फिर टुकड़े नहीं होते । वह इन्द्रियों से नहीं जाना जा सकता है । वह एक प्रदेशी ही कहलाता है उसमें और प्रदेश नहीं होते । वही एक प्रदेश आदि है वहीं मध्य है और वही अंत हं । उसमे एक रस रहता हे एक गंध रहता है एक वर्ण रहता है और दो स्पर्श रहते है । वह अत्यंत सूक्ष्म होता है और अन्य स्कंधादिकों का कारण भूत होता है । अनंतानंत परमाणु मिलकर जब बंत्ररूप परिणत हो जाते है तब उसको स्कंध कहते हैं । स्कंध के आधे भागको देश कहते है और देश के आधे भागको प्रदेश कहते हैं। जिसको पकड़ सके कहीं रख सके फेंकसके इस प्रकार काम में आनेवाले पृथ्वी जल वायु अग्नि आदि सब स्कंध पुद्गल हैं बहुत से ऐसे भी स्कंध है जो सूक्ष्म होते है पकड़ने में नहीं आते परंतु अनंत परमाणुओं के समूह से बने होते है ।
यही बात आगे दिखलाते है ।