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णिहिला वपं च खधा तस्स य अद्धं च वुच्चदे देसो | अद्भुद्धं च पदेसो अविभागोहोद परमाणु ॥
निखिला बहवश्च स्कन्धः तस्यचक्षर्थ उच्यते वेशः । अर्थं च प्रदेशोऽविभागी भवति परमाणुः ।। ३०४ ।।
भाव-सग्रह
अर्थ- समस्त परमाणुओं का पिंड बहलाता है उसका आधा देश कहलाता है, उसका भी आधा प्रदेश कहलाता है और जिसका फिर विभाग न हो सके ऐसे सबसे छोटे भाग को परमाणु कहते है ।
जागे अन्य अजीव पदार्थों को कहते है ।
धमाधम्मागासा अरूविणो होंति तह य पुण कालो । इ ठाण कारणावय उग्गहण वत्तणा कमसी ॥
धर्माधर्माकाशाः अरुषा भवन्ति तथा च पुनः कालः । गतिस्थान कारणमपि चावगाहनस्य वर्तनायाः क्रमशः || ३०५ ||
पदार्थ अरूपी है और
अर्थ - धर्म अधर्म आकाश और काल ये इसीलिये ये अमूर्त है । इनमें से व द्रव्य जीव पुद्गलों की गति में कारण है, अधर्म द्रव्य जीव पुद्गलों की स्थिति में कारण है, आकाश द्रव्य समस्त द्रव्यों को अवकाश देने में कारण है और काल द्रव्य द्रव्यों की पर्याय बदलने में कारण है ।
आगे इसी बातको विशेष रूप से दिखलाते है ।
जीवाण पुग्गलाणं गद्दप्पव ताण कारण धम्मो । जह मच्छाणं तोयं थिरभूया जेवसी गई ।।
जीवानां पुद्गलानां गति प्रवृतानां कारणं धर्म : । यथा मत्स्यानां तोयं स्थिरोभूतान् ब स नयति ॥ ३०६ ॥
अर्थ- गमन करने की शक्ति जीव और पुद्गल इन दोनों पदार्थो
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में है जिस प्रकार गमन करने की शक्ति मछली में है तथापि वह
बिना पानी के गमन नहीं कर सकती । उसकी गति में पानी सहायक
है उसी प्रकार गमन करने में प्रवृत्त होनेवाले जीव पुद्गलों को धर्म