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कामति, य एव समस्त विकल्पमतिकामति स य समयमार विति"
(श्रीमहाभूतचन्द्राचायं मृत अात्मख्याति )
इस लिये जो समस्त नय्पक्षो को छाइता है, तथा वही सनयमार का अनभव कर सकता है। नयपातिक्रानो भग्यते यः स समयमार; शुद्धात्मा । तद्यथा-व्यवहारेण बद्धो जीव इति नथ विकल्प. गुरु जोत्र स्वस्पं न भवति निश्चयेनाबद्धो जीन इति च नय विकल्पः अद्ध जाद म्यरुप न मवति निश्चयव्यवहाराभ्यां बद्धाबद्ध जीव इति वचन विकल्पः शुद्ध जोध५३ न पशि . काविति । कुरा विकल्प नया इति वचनात् । श्रतजानं च क्षायोपशमिक क्षायोपशमस्तु शानावरणीय क्षायोपशभजनित तत्वात । यथिपि व्यवहार नयेन छपमस्थापेक्षया जीवस्वरूप मण्यते तथापि केवळ सानापेक्षया शुद्धीव स्वरूपं न भवती । तहि कथभूत जीवस्वरूपमिति चेत् ? यौसौ नवपक्षपात रहित स्वसंवेदन ज्ञानो तस्याभिषायण बद्धाबद्ध म्:-- मादि नय विकल्परहितं चिनदेव स्वभाव जीवस्वरुप भवतीति ।
(जयसेन आचार्य की तात्पर्यवृत्ति टीका गाथा १५)
शुखात्म तत्व क बास्तविक स्वरूप जो की समयसार नामसे कहा जाता है वह है तो इन दोनो पक्षोंसे भिन्न प्रकार का ही हैं। क्योंकी व्यवहार नयके कहने के अनुसार जीव कॉमे बधा हुवा है जो की शुद्धजीवका स्वरुप नही है और निश्चपनय । जीत्र कर्मोसे अबद्ध है । वह मी नए का विकल्प है जो की शुद्ध जीवका म्वरुप ही है इसलिये निश्चय और व्यवहार के द्वारा जीव को बद्ध या अबद्ध कहना यह जीव मात्र का स्वरूप नहीं है। यह नय का विकल्प है। नय जितने भी होते हैं वह सब श्रुतज्ञानके विकल्प रुप होते हैं वह सिद्धांत की बात है । और श्रुतज्ञान है सो क्षायांप. शमिक है। वह भाय पगम झालाबोय कर्म के क्षायोपशमसे प्रकट होने के कारण अपि व्यवहारनय के द्वारा छमस्थ जीव की अपेक्षा से जीव का स्वाप होता है तथापि केवलज्ञान की अपेक्षा से वह शुद्ध जीद का स्वरूप नहीं है तब फिर जीव का स्वरूप क्या है इस प्रपन के होने पर आचार्य उत्तर देते हुये कहते है- नय के पक्षपात से रहित जो स्वसंवेदन ज्ञानी जीव है उसके विचारानुसार जोष का स्वरूप बद्धावद्ध या महामत आदि नय के विकल्पों में रहित चिदानंदम्वरुप हैं.सा हं।
ण एक मुक्ता नयगक्ष यात स्वरुप गुप्ता निवसति नित्यं । बिकल्प जाल च्युन शांत चित्रास्तएव साक्षादमुतं पिबति ।। ६८ ॥