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भाव-सग्रह
निहतः श्रृंगेण मृनः वृषभः श्वेतः कृष्ण: संजातः । भागारसों प्राप्त: रुडोपि च तस्य मार्गेण । २४९ ।। गंगाजलं पविट्ठा चत्ता ते दोयि यमहरुचाए। रुदस्स करय लागो लयं पडियं कवालोसि ।। २५० ।। गंगा जले प्रविष्टी त्यक्ती तो वापि ब्रह्महत्यया ।
न रुद्रस्य करे लग्नं तत्र पतितं कपाल मिलि ।। २५० ।।
अर्थ - इस प्रकार उस महादेवने अनेक तीर्थों मे परिभ्रमण किया तथापि उन महादेव की ब्रह्म हत्या छूट नहीं सकी थी। जब वह महादेव इस प्रकार परिभ्रमण करताहुआ पलाश नाम के एक गांव में पहुंचा तब उस गांव में उपवास किये हुए एक ब्राह्मण को उसी के एक बेल ने अपने सीगों मार डाला था । इस ब्रह्म हत्या के पाप से बह सफेद बल उसी समय काला हो गया था । तदनंतर बह बैल अपना ब्रह्म हत्या का पाप दूर करने के लिये बनारस नगरी में पहुंचा। वह बैल भी पलाश गांव का था और वहीं पर महादेव पहुंच गया था। इसलिये उस कृत्य को देखकर महादेव भी उस बैल के पीछे पीछे बनारस मे जा पहंचा था। बनारस जाकर उन दोनों ने गंगा जल में प्रवेश किया तब कहीं जाकर वे दोनों ही ब्रह्म हत्या से मुक्त हुए । तथा ब्रह्म हत्या के कारण महादेव का हाथ मे जो कपाल लग गया जो त्रिपक गया था वह भी उस ममय गंगा जल मे गिर पडा ।
आगे आचार्य समझा कर कहते है । जस्स गुरू सुरहिसुओ गं तोएण फिट्टए हच्चा । सो देवो अण्णस्स य फेडइ कह संचियं पावं ।। २५१ ।। यस्य गुरुः सुरभिसुतः गंगातोयेन स्फिटयते हत्या । स देवोऽन्यस्य च स्फोडयति कथं संचितं पापम् ॥ २५१ ।।
अर्थ- आचार्य कहते है कि देखो जिस महादेव ने अपनी ब्रह्म हत्या दूर करने के लियं बेल को तो गुरु बनाया और गंगा के जल से उसकी ब्रह्म हत्या दूर हुई वह महादेव अन्य संसारी जीवों के चिर काल