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________________ भाव-संग्रह अर्थ-- जब महादेव समस्त लोक का महार कर डालते है तो फिर समस्त लोक के. नाट हो जाने पर वे महादेव स्वयं कहां ठहरते है ? फिर तो एक महा अंथकार ही रह जाना होगा तथा उस समय गौरी और गंगा कहां चली गई होमी । कुछ तो समझना चाहिये । सो लहइ एमगाम पावी लोऐहि वरचदे सो हु । जो पुण डहइ तिलोयं सो कह देवत्तणं पत्तो ॥ २४३ ।। यो दहति एकग्रामं पापो लोकरुच्यते स हि । यः पुनः दहति त्रिलोक स कथं देवत्वं प्राप्तः ॥ २४३ ।। अर्थ- इस संसार में जो कोई पुरुष किसी एक छोटे से गांव को भी जला देता है वह इस संसार में महा पापी कहलाता है । फिर भला जो तीनों लोकों को जला डालता है वह महादेव देव कैसे हो सकता है उसे तो महा पापीयों से भी बढ़कर महापापी समझना चाहिये । जो हणइ एय गाव विप्पो वा सोवि इत्थ लोएहि । गो बभहच्चयारी पमणिब्जह पावकारी सो ।। २४४ ॥ यः हन्ति एकां मा वि वा सोपि अत्र लोके ।। गोब्रह्महत्याकरो प्रमण्यते पापकारी सः ॥ २४४ ।। अर्थ- देखों इस संसार में जो पुरूष किसी एक गाय को मार दालता है अथवा किमी एक ब्राह्मण को मार डालता है वह गाय की हत्या करनेवाला और ब्रह्महत्या करनेवाला तो महापापी गिना जाता है जो पुण गोणारि पमुहे वाले बुड्डे असंखलोयत्थे । संहारेइ असेसं तस्सेव हि फि भणिस्सामो ॥ २४५ ।। यः पुनः गोनारी प्रभुखान् वालान् बुद्धान् असंख्य लोकस्थान् । सहरति अवशेषान् तमेवहि कि भणिष्यामः ।। २४५ ।। अर्थ- फिर भला जो महादेव देव कहलाकर भी असंख्यात लोकों मे रहनेवाले गाय स्त्रियां वालक वृद्ध आदि समस्त जीवों का संहार कर डालता है उसे क्या कहना चाहिये ? वह तो महा पापियों से भी बढ़कर महा पापी हो सकता है।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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