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________________ भाव-संग्रह ___ अर्थ- जो रामचन्द्र ईश्वर होकर भी अपनी स्त्री को हरण करने वाले को भी नहीं जानते और बन में रहने वाले पशुओं के बच्चों से पूछते है तदनंतर यदि वे जान भी लेते है तो भी वे अपनी स्त्री को ला नहीं सकत । तया पत्थरों से समद्र का पुल बनवाते हैं और अनेक सेवकों को भजते है | क्या से नारायण के ऊपर ही यह तीनों लोक ठहरा हुआ है जो अपने शत्रु को भी नहीं मार सकते और अपनी स्त्री की रक्षा नहीं कर सकते । नारायण भला तीनों लोकों की रक्षा केस कर सकते है । अर्थात् कभी नहीं कर सकते । जो देओ होऊणं माणुस मतेहि पंडुपुत्तेहिं । सारइ वोलाइतो जुझे जेउं कओतेहिं ।। २३३ ।। यो देवो भूत्वा मनुष्यमात्रः पाण्डुपुत्रः । सारथि कथयित्वा कथयित्वां युद्धे जेतुं कथितः तैः ।। २३३ ।। अर्थ- जो नारायण ईश्वर होकर भी साधारण मनुष्य पांडवों के सारथी बने और इस प्रकार उन्होंने युद्ध में पांडवों को जिताया । तम्हा ण होई कत्ता किण्हो लोयस्स तविह भेयस्स । मरिऊण वार वारं दहावयारेहि अवयरइ ।। २३४ ।। तस्मान्न भवति कर्ता कृष्णो लोकस्य त्रिविधवस्य । मृत्वा पुनः पुनः दशावतारै; अवतरति ॥ २३४ ।। अर्थ- इन सब बातों से यह सिद्ध होता है कि कृष्ण न तो तीनों लोकों के कर्ता है न उसके पालन करने वाले है । वे तो बार बार मरकर अवतार धारण किया करते है तथा अनुक्रमसे दश अवतार धारण करते है। एवं मणति केई असरीरो णिक्कलो हरी सिद्धी । अवयरइ यश्चलोए देसं गिण्हेह इच्छाए ।। २३५ ।। • - -. भो भो भुजंगतरुपल्लव लोलजिहव, । बंधूकपुष्पदलसन्निभ लोहिताक्ष ॥
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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