SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाव-संग्रह अर्थ- ब्रह्मा की इस कामामक्ति को देख कर देवलोग सब इसने लगे तब ब्रह्माने क्रोधित होकर अपने गये वाले मुख से उन देवों को भक्षण करने का उद्यम किया । यह देखकर देव लोग सब महादेव को शरण में गये तब महादेव ने अपने हाथ से उस ब्रम्हा का ऊपर का गधेका मस्तक काट डाला । इस प्रकार जव उस ब्रम्हाका ऊपर का मस्तक कट गया तब वह ब्रम्हा उन्म तिलोत्तमा के बिरह से संतान होकर पीछे लौट आया । पविसेवि णिज्जणांवणं पिच्छिरिछी विरहगो तत्थ । सेवइ कामासत्तो तिलोत्तमा चित्ति धरिऊणं !! २१३ ।। प्रविश्य निर्जनवनं दृष्ट्वा ऋक्षों विरहगतः तत्र । सेवते कामासक्तः तिलोत्तमा चेतसि धृत्वा ॥ २१३ ।। अर्थ- तदनंतर बह ब्रम्हा तिलोत्तमा के विरह से संतप्त होकर एक निर्जन वनमें चला गया । यहां पर उसने एक रीछिनी देखी। और जम रीछिनी को अपने मनमें तिलोत्तमा मानकर कामदेव के वशीभत होकर उस रीछिनी के साथ संभोग करने लगा। तस्सुप्पण्णो पुत्तो जवउ णामेण लोय विक्खाओ । रिच्छापई जाओ भिच्चो सो रामदेवस्त ।। २१४ ॥ तस्योत्पन्नः पुत्रः जम्बू: नाम्ना लोक विख्यातः । ऋक्षाणां पति: जातः भृत्यः स रामदेवस्य ।। २१४ ।। अर्थ- जब ब्रम्हाने उस रीछिनी के साथ संभोग किया नब उस गछिनी से एक पुत्र हुआ उसका नाम जंबू था । जो जंबू के नाम से संसार में प्रसिद्ध है। वह जंबू समस्त रोगों का अधिपति था और रामचंद्रका सेवक था । जो कुणइ जयमसेसं सो कि एक्का दि तारिसो महिला । सक्कद ण विरइऊणं सेवइ णिग्धिगो रिच्छिी ।। २१५ ॥ यः करोति जगवशेष स कि एका मपितादशी महिलाम् । शक्नोति न विरचयितुं कि सेवते निधृणा ऋक्षोम् || २१५ ।।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy