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________________ भाव-पग्रह अर्थ- जब वह ब्रह्मा स्वर्गका राज्य लेने के लिये घोर तपश्चरण कर रहा था तब इन्द्र को भी अपने गज्य की चिता हई और उसका तपश्चरण प्रप्ट करने के लिय तिलोत्तमा नाम की अप्सरा भेजी । वह तिलोत्तमा उम ब्रह्मा के गामने आकर नृत्य करने लगी : जिसका मन कामसेवन के लिये आसक्त हो रहा है और राग के रससे रसिक हो है गंसा वह ब्रह्मा उस नृत्य को देखता देखता अपने तपश्चरण से भ्रष्ट हो गया और नृत्य देखने के लिये उसने अपने चार मुख बना लिये । भावार्थ- यह आसरा बहुत देर तक तो ब्रह्मा के सामने नृत्य करती रही । और ब्रह्मा उसे देखता रहा । ब्रह्मा को आसक्त देखकर वह तिलात्तमा उसके बगल में नृत्य करने लगी। तब उस नृत्य को देखने के लिये बगल में भी एक मुख बना लिया । जब वह तिलोत्तमा पीठ पीछे नृत्य करने लगी। तब ब्रह्माने उधर भी एक मुख बना लिया । जब वह दूसरं बगल में नृत्य करने लगी तव उघर भी चौथा मुख बना लिया । इस प्रकार ब्रह्मा ने चार मुख बनाये । परन्तु जब वह तिलोत्तमा ऊपर आकाश में नत्य करने लगी तव ब्रह्मा ने ऊपर भी एक मुख वना लिया। छंडिय णियवडतं पहुत्तणं देव वत्तणं तबोचारियं । कामाउरो अलज्जो लामो मग्गेण सो तिस्स ।। २११ ।। त्यक्त्वा निज वृद्धत्वं प्रभुत्वं देवत्वं तपश्चर्यम् । कामातुरः अलज्जः लग्नः मार्गेण स तस्याः ।। २११ ॥ अर्थ- इस प्रकार उस ब्रह्माने अपना बड़प्पन छोड़ दिया, अपना प्रभुत्व छोड़ दिया, अपना देवपना छोड दिया और अपना तपश्चरण छोड दिया, कामासक्त होकर जिस मार्ग से वह तिलोत्तमा चलने लगी उसी मार्ग से उसके पीछे पीछे चलने लगा। हसिओ सुरेहिं कुद्धो खरसोसो मक्खिाउं पउत्तो सो! सकरकरकंडिसिरो विरहपलित्तो णियत्तो य ॥ २१२ ॥ हसितः सुरैः कुखः खरशोष भनितुं प्रवृतः सः । शकरकरखण्डितशिरः विरहोपलिप्तो निवृत्तश्च ।। २१२ ।।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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