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________________ भाव-संग्रह अर्थ-- आचार्य कहते हैं कि देखा जो अम्हा समस्त जगत को उत्प कर सकता है वह क्या एक तिलोत्तमा ऐसी स्त्री नहीं बना सकता था । फिर क्यों उसने अत्यंत घृणित रोछिनी का सेवन किया ? जो तिलोत्तम जो तिलोत्तम णियवि गच्चंति, धम्मह सरजरजरिउ चत्तणियम चउवयणु जायउ । बणि णिवसइ परिभट्टतउ रमइ रिच्छि सुरयाण रायउ ।। सो बिरंचि कह संभवई नयलोयज कत्तारु । जो अप्पाण उत्तरइ फेडउ विरह वियारु ।। २१६ ।। यः तिलोत्तमा या तिलोत्तमां दृष्ट्वा नृत्यन्तीम् । अम्हा स्मर जर्जरितः त्यक्त नियमः चतुर्वदनः जातः वने निवसति परिभ्रष्टतपाः रमते ऋक्षी सुराणां राजा । स विरंचिः कथं संभात त्रिलोकस्य कर्ता । यः आत्मानं न हि तारयति स्फोटयति विरविकारम् । २१६ । ____ अर्थ- जो ब्रह्मा नृत्य करती हुई तिलोत्तमा को देखकर कामदेव के वशीभत होकर जर्जरित होगया था। उसने अपने सब नियम व तपश्चरणों को त्याग कर दिया था और उस तिलोत्तमा मे आसक्त होकर अपने चार मुख बना लिये थे अपने तपश्चरण से भ्रष्ट होकर नया बन में जाकर रीछिनी से संभोग करने लगा था वह ब्रह्मा तीनों लोकों को उत्पन्न करने वाला कैसे कहा जा सकता है : जो ब्रह्मा अपने आत्मा का भी उद्धार नहीं कर सकता और इस प्रकार विरह अवस्था को ब्रगट करता है यह ब्रम्हा कभी देब नहीं हो सकता । आग और भी दिखलाते है । त्थि धरा आपास पवणाणल तोय जोय ससि सूरा । जइ तो कत्य ठिदेणं वंभो रइयं तिलो ओत्ति ।। २१७ ।। न सन्ति घरा आकाशं पवनानल तोय ज्योतिः शशिसूर्याः । यदि तहि कुत्र स्थितेन ब्रम्हणा रचितः त्रिलोक इति । २१७ । अर्थ- यदि ब्रम्हाने इन तीनों को बनाया तो उसके पहले न पृथ्वी
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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