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________________ भाव-संग्रह अर्थ - यदि ब्रह्मा तीनों लोकों को उत्पन्न करता है तो फिर वह स्वर्ग के इन्द्रका राज्य लेने के लिये ब्रह्मलोक को छोड़कर और मनुष्य लोक मे आकर घोर तपश्चरण क्यों करता है ? १०१ भावार्थ- जब तीनों लोकों को उत्पन्न कर सकता है तो बढ़ दूसरा स्वर्ग भी बना सकता है और उसका राज्य स्वयं कर सकता है तो फिर उसे स्वर्ग के राज्य के लिये तपश्चरण करने की क्या आवश्यकता श्री : आगे और भी कहते है। जरउसे अंडय सव्वे एयाई भूयगामाई | णारय गर तिरिय सुरा णिवंदियं वणिसुद्दपहुईया || २०५ || जरायु जोद्वित्स्वेदाण्डजान् सर्वान् एतान् भूतग्रामान् । नारकनरतिर्यक सुरान् वंदिनः वाणिशूद्रप्रभृतीन् । २०५ ।। चंडाल डूंब घविरा वरुडा कहलालछिप्पिया चेव । हृय गय गोमहिसि खरा वग्घ किडो सीह हरिणाई ॥ २०६ ॥ चाण्डालडोम्ब धीवर वरुट कलवारखिपकांश्चैव । हयगजगोमहिषीखरान् व्याघ्रकीटिसिंह हरिणान् ॥ २०६ ॥ जाणा कुलाई जाई णाणा जोणी य आउ विहवाई । णा देह गवाई यण्णा रुवाई विविहाई । २०७ ।। नाना कुलानी जाती; नाना योनींश्च आयुविभवादीनि । नाना बेगतान् वर्णान् रूपाणि विविधानि ।। २०७ ।। गिरि सरि सायर दीयो गामा रामाई धरणि आयासं । जो कुण खणद्वेणं चित्तियमित्तेण सव्वाई ।। २०८ ।। गिरिसरित्सागरद्वीपान् ग्रामारामान् धरणीमाकाशम् । यः करोति क्षणार्धन चिन्तितमात्रेण सर्वान् ।। २०८ ।। किं सो रज्यणिमित्तं तवसा तावेइ णिच्च णियदेहं । तिहुवण करण समत्यो कि ण कुणइ अध्पणो रज्जं ।। २०२ ।। कि सा: ज्यनिमित्तं तपसा तापयति नित्यं निजवेहम् | त्रिभुवनकरणसमर्थः किं न करोति आत्मनो राज्यम् । २०९ ।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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