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हुए पारिणामिक भाव बतलाये हे | यह सासादन गणस्थान न तो अ.. पर्याप्तक नारकी जीवों के होता है और न समस्त लब्ध्यपर्याप्तब, जब के होता है। सासादन गुणस्थान वाला न तो आहारक प्रकृति का बंध करता है, न आहारक मिश्र प्रकृति का बंध करता है और न तोयंकर प्रकृति का बंध करता है । उसका सम्बग्दर्शन नष्ट हो दुका है इसलिये वह ऊपर लिखी प्रकृतियों का बंध नहीं कर सकता । सासादन गुणस्थान वाले जीवके एक बार सम्यग्दर्शन प्रगट हो चुका है इसलिये यह भव्य अवश्य है और सम्मान के पट होने के बाद ही लाल में मोक्ष प्राप्त कर लेता है । देखो सम्यग्दर्शन का माहात्म्य केसा है जो थोड ही काल के लियं उत्पन्न होकर भी थोडे ही समय में मोक्ष पहुंचा देता है। इस लिये आचार्य कहते है कि इस सम्यग्दर्शन के प्रकट होने का भावना भव्य जीवों को हर समय करते रहना चाहिये ।
इस प्रकार दूसरे सासादन गुणस्थान का स्वरूप कहा । अब आगे तीसरे मिश्र गुणस्थान का स्वरूप कहते है । सम्मामिच्छुदएण य सम्मिस्सं णाम होइ गुणठाणं । खयउवसमभावगयं अंतरजाई समुट्वि ।। १९८ ।। सम्यक्त्व मिथ्यात्वोदयेन च संमिश्रं नाम भवति गुणस्थानम् ।
क्षयोपशम मावगत अन्तर्जाति समुद्दिष्टं ।। १९८ ।। अर्थ- दर्शन मोहनीय की तीन प्रकृतियां है:- मिथ्यात्व, सम्य. ग्मिथ्यात्व और सम्यक प्रकृति । इनमें से सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति के उदय से मिश्रगुण स्थान होता है । इसमें क्षायोपमिक भाव होते है 1 तथा वे परिणाम सम्यवत्व और मिथ्यात्व इन दोनों से संम्मिलित रूप होते है।
भावार्थ- इस गुणस्थान में रहने वाले जीवों के भाव न तो सम्यवत्व प होते है न मिथ्यात्व रूप होते है किंतु इन दोनों से मिले हुग और इस दोनों में निम्न तीसरे ही प्रकार के परिणाम होते है।
आगे इसी बात को उदाहरण देकर बतलाते हैं। वडवाए उप्पण्णी खेरण जइ हवा इत्थ बेसरी। तह तं सम्मिस्स गुणं अमहिय गिह सपल संजमणं ।। १९९ ।।