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________________ गाव मंत्रह उपटाम सम्यक्त्व की स्थिती में जितना काल शेष रहा है उसके समाप्त होने पर मिथ्यात्व का उदय होता है और उस समय बह मिथ्यात्व गुणस्थान में पहुंच जाता है । सम्बग्दर्शन के छूट जाने के अनंतर से लेकर जबतक मिथ्यात्व गुणस्थान प्राप्त होता है तब तक का इस सागादन गुणन का काल है और काले का एक समय है और अधिक में अधिक छह आवली है। एयम्मिगुपट्टाणे कालो णस्थित्ति तित्तिओ जम्हा । तम्हा वित्थाणे ण हि संखेओ तेण सो उत्तो ।। १९६ ।। एतस्मिन् गुणस्थाने कालो नास्ति तावन्मात्रः यस्मात् । तस्माद्विस्तायो नहि संक्षेपेण तेन स उक्तः ।। १९६ ।। अर्थ- इस दूसरे सासादन गुणस्थान का कुछ समय वा काल नहीं है । ऊपर जितना बतलाया है केवल उतना ही काल है इसीलिये इस गुणस्थान का स्वरूप विस्तार से नहीं कहा है अत्यंत संक्षेप से ही उम्मका म्वरूप कहा है। परिणामिय भावमयं विवियं सासायणं गुणट्ठाणं । सम्मत्त सिहर पड़ियं अपत्त मिच्छत भूमितलं ॥ १९७ ॥ पारिणामिक भावगतं द्वितीयं सासादन गुणस्थानम् । सम्यक्त्व शिखरपतितं अप्राप्तमिथ्यात्वभूमितलम् ।। १९७ ।। अर्थ- जिस प्रकार कोई पुरुष किसी पर्वत से गिरता है और जव नक पृथ्वीपर नही आजाता तबतक वह न तो पवंतपर माना जाता है और न पृथ्वी पर कितु मध्य में माना जाता है । इसी प्रकार जिस जीवके उपशम सम्यग्दर्शन छूट गया है और मिथ्यात्व गुण स्थान प्राप्त नहीं हुआ है तब तक उसके सासादन गुणस्थान कहलाता है। इस दूसरे गुणस्थान मे पारिणामिक भाव माने जाते हैं। भावार्थ- यद्यपि इस गुणस्थान मे मिथ्यात्व प्रकृति का उपशम है और अनन्तानुबंधी की किसी एक प्रकृति का उदय है इसलिये इसमें क्षायोपशमिक भाव मी कहे जा सकते है तथापि इसकी मुख्यता न रखते
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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