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________________ भाव-मग्रह अर्थ- इस लोकाकंश में जितने द्रव्य भरे हुए है वे सब नित्य भी है और अनित्य भी है । पर्यायाथिक नयसे वे सब द्रव्य अनित्य है अर्थात् उनकी पर्याय सदा बदलती रहती है इसलिय अनित्य है और द्रव्यार्थिक नयसे वे सब द्रव्य नित्य है । भावार्थ- एक बालक बा एक पौधा प्रतिक्षण वढता रहता है। यह उसका बढ़ना ही पर्यायका बना है। इस प्रकार उ वालक को वा पौधा अनित्य भी कह सकते है परन्तु उस बालक के माता पिता बा उस पोधा को लगानेवाला कोई पुरुष बड़ा होने पर भी उसको “यह वही बालक है जो पन्द्रह वर्ष पहले उत्पन्न हुआ था" ऐसा समझता है तथा पौधा लगानेवाला भी "यह वही वृक्ष है जो मैनें दश वर्ष पहले लगाया था" ऐसा समझता है और ऐसा ही कहता है । इसलिये वह बालक वा पौधा नित्य भी माना जाता है । इस प्रकार वस्तुका स्वभाव नित्य अनित्य उभय स्वरुप है। वह सर्वथा क्षणिक वा सर्वथा नित्य कभी नही हो सकता। आग इसका उपसंहार कहते हैं । इय एयंत कहियं मिच्छतं गुरुयपापसंजणयं । एसो उद्धं बोच्छं वेणइयं णाम मिच्छत्तं ।। ७२ ।। इप्ति एकान्तं कथितं मिथ्यात्वं गुरुकपापसजनकम् । इत उर्व वक्ष्ये वैनयिक नाम मिथ्यात्वम् ॥ ७२ ।। अर्थ - इस प्रकार महापाप उत्पन्न करनेवाले एकान्त मिथ्यात्वका स्वस्प कहा X । अब आगे वैयिक नाम के मिथ्यात्त्र का स्वरूप कहते इस प्रकार दुसरे एकान्त मिथ्यात्व का स्वरूप जानना । x सिरि पासणहतित्थे सरयू तीरे पलासयरत्थे । पिहियासवस्स सीसो महासुओ बुद्धकित्ति मुणि 11 तिमिफरणासणोण हि अगहिय पब्वज्जओ परिभट्ठो । रत्तंबरं धरिसा पबढियं तेण एयतं ॥
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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