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भात्र-मंग्रह
प्राप्त हो जाने की इच्छा करते है 1 परन्तु एसे पापों से स्वर्ग वा मोक्षकी प्राप्ति होना सर्वथा असंभव है।
आगे इसी बातको दिखलाते है ।
असिऊण मंसगासं मज्ज पविऊणगम्मए सग्गं । जड़ एवं तो सुंडय पारद्धिय चेव गच्छन्ति ।। ६९ ।। अशित्वा मांसग्रास अचं पीत्वा गम्यते स्वर्गम् । यद्येवं तहि शौण्डाः पालिकाश्चंव गच्छन्ति ॥ ६९ ।। अर्थ-- यदि मांस भक्षण करने से वा मद्य पीनेसे ही वे जीव स्वर्ग चले जाते हों तो संसार मे मद्य पीने वाले और मांस भक्षण करने बाल हत्यारे पारधी आदि सबको स्वर्ग की प्राप्ति हो जानी चाहिये । परन्तु एसा होना सर्वथा असंभव है । मांस और मद्य दोनों ही अत्यन्त निन्द्र
और घणति पदार्थ है तथा इनका सेवन करने वाले किन्या हे माते । फिर भला उनको स्वर्ग की प्राप्ति कैसे हो सकती है ? कभी नहीं हो सकती।
इम एयंतविडिओ बुद्धो ण मुणेइ वत्थुसदभावं । अण्णाणी कपपावो सो दुग्गइ आय णियमेण ।। ७० ।। इति एकान्तविनटितो बुद्धो न मनुते वस्तुस्वभावम् ।
अज्ञानी कृतपापः स दुर्गात याति नियमेन ॥ ७० ॥
अर्थ- इस प्रकार एकान्त मिथ्यात्व को मानता हुआ जीव वस्तुका स्वभाव नहीं समझता । वह अत्यन्त अज्ञानी है और इसी लिये अपने किये हा पापों के कारण नियममे दुर्गति को प्राप्त होता है ।
आग पदार्थों का यथार्थ रवभाव दिखलाते है। णिच्चाणिचं दवं सच्वं इह अस्थि लोयममम्मि । पज्जाऐण अणिज्चं णिच्चं फुड होड़ बब्वेण ।। ७१ ॥ नित्यमनित्यं द्रव्यं सर्वमिहास्ति लोकमध्ये । पर्यायणानित्यं नित्यं स्फुटं भवति द्रव्येण ॥ ७१।।