SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 243
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाव-संग्रह आगे अन्य प्रकार में भी ऐसी हिंसा का निषेध करते है। अण्णं इयणि सुणिज्जइ सत्य हरिवं मरुद्दभत्ताणं । सम्बेसु जीवरासिसु अंगे वेधा हु णिवसंति ॥ ४६ ॥ अन्यवितिथूयते शास्त्रे हरिव्रम्हरुवभक्तानाम् । सर्वेषां जोय राशीनां अंगे सुवा हि निवसन्ति ॥ ४६ । अर्थ-- इन के मः' में यह भी लिखा है कि ब्रह्मा विष्णु महादेव ममस्त जीवों के अंगों में निवास करते है यथा नाभिस्थाने बसेद ब्रम्हा विष्णुः कठे समाश्रितः । तालुमध्ये स्थितो रुद्रो ललाटे व महेश्वरः ।। नासाग्रे च शिवं विद्यात्तस्यान्ते च परोपरः । परात्परतरं नास्ति इति शास्त्रस्य निश्चयः || अथात्- समस्त जीव राशियों की नाभि में ब्रह्मा निवास करते है, विष्णु कंठ में निवास करते है, ताल के मध्य भाग में रुद्र निवास करते है, ललाट पर महेश्वर रहते है, नाक के अग्र भाग पर शिव रहते है तथा नासिका के अंत में अन्य देवता रहते है। आगे किसी भी जीव के मारने से इन ब्रह्मा विष्णु महादेव की भो हिमा होनी है, ऐसा दिखलाते है। सज्वेसु मीवरासिसु ए ए णिवसंत पंच ठाणेसु । नइ सो किं पसु बहणे मारिया होंति ते सखे ।। ४७ ।। सर्वेषु कोबराशिषु एते निवसन्ति पंचस्थानेषु । यदि तहि कि पशुवधेम न मारिता भवन्ति ते सर्षे ॥ ४७ ।। अर्थ- इस संसार में रहनेवाले समस्त ससारी जीयों के नाभि कंड तालु ललाट और नासिका इन पांचो स्थानो में ब्रह्मा विष्णु महेस्वर रहते हैं फिर भला किसी भी प्राणी से मारने से उनकी मान्यतानुसार इन ब्रह्मा विष्णु महेश का भी घात अवश्य हो जाता है। इस प्रकार किसी भी जीव की हिंसा करने से इन देवों की भी हिंसा अवश्य होती है।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy