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________________ भाव-संग्रह अर्थ - यदि विष्णु सर्व व्यापक है तो क्या वह उस मोटे ताजे बकरे के शरीर में नहीं है ? अवश्य है । फिर भी ग्रोत्रिय लोग जिस बकरे का कोई रक्षक नहीं है, जो तडफ रहा है और श्वासें छोड़ रहा है ऐसे उस बकरे को मार ही डालते है । यह कितनी विपरीत बात है लिखा भी है I अन्ये चैर्व वदत्येके यज्ञार्थ यो निहन्यते । तस्य मांसाशिनः सोपि सर्वेयान्ति सुरालयम् ॥ तत्कि न क्रियते यज्ञः शास्त्रज्ञस्तस्य निश्चयात् । पुत्रवध्वादिभि: सर्वे प्रगच्छन्ति दिवं यथा ॥ २७ अर्थात् कोई कोई लोग ऐसा कहते है कि यज्ञ में जो पशु मारा जाता है और जो लोग उसका मांस खाते है वे सब और वह पशु सब स्वर्गं मे जाकर उत्पन्न होते है। परंतु ऐसा कहने वालों को समझना चाहिये कि यदि उनका ऐसा निश्चय है तो फिर वे लोग अपने पुत्र भाई आदि का होम क्यों नहीं करते जिससे वे सब लोग अनायास ही स्वर्ग मे जा पहुंचे और भी लिखा है I नाहं स्वर्गफलोपभोग तृषितो नाभ्यथितस्त्वं मया संतुष्टस्तृणभक्षणेन सततं हंतुं न युक्तं तव, स्वर्गे यान्ति यदि त्वया विनिहता यज्ञे ध्रुवं प्राणिनो यज्ञं कि करोषि मातृपितृभिः पुत्रैस्तथा बांधवं ॥ अर्थात् जिस पशु को यज्ञ मे मारना चाहते है वह पशु उन त्रियों से कहता है कि हे भाई! तू जो मुझे मार कर स्वर्ग पहुंचन चाहता है सो भाई मुझे तो स्वर्ग के फल भोगने की लालसा नहीं है. न मैं आप लोगों से स्वर्ग पहुंचाने की प्रार्थना करता हूँ मैं तो सदा काल तृण भक्षण करने मे ही संतुष्ट रहता हूं इसलिये मुझे मारना सर्वथा अनुचित है । यदि यह बात निश्चित है कि इस यज्ञ मे मारे हुये प्राणी सब स्वर्ग में चले जायंगे तो फिर आप लोग अपने माता पिता पुत्र भाई आदि कुटुंबियों का ही इस यज्ञ में होम क्यों नहीं करते ? जो वे सब अनायास ही स्वर्ग मे पहुंच जायं ?
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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