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________________ मान-संग्रह भावार्थ- अपने साक्षात् देव को मारवार उसका मांस खा जाना सव मे बड़ा पाप है इससे बढकर और कोई पाप नहीं हो सकता । यदि ऐसे महा पाप से भी यह जीव म्बर्ग में चला जाता है तो फिर नरक में जाने योग्य संसार भर में कोई महा पाप नहीं है । इससे सिद्ध होता है कि जीवों को मारने और मांस खाने से स्वर्ग की प्राप्ति कभी नही हो सकती। ये दोनों ही काम नरक के कारण हैं । लिखा भी है - अल्पायुषो दरिद्राश्च नीचकर्मोपजीविनः । वुष्कुलेषु प्रसूयन्ते ये नराः मास मोजिनः ।। येत्ति मनुष्यो मांसं निर्दयचेताः स्वदेहपुष्ट्यर्थम् । याति स नरकं सततं हिंसापरिवृत्तचित्तत्त्वात् ।। अर्थात्- जो पुरुष मांस भक्षण करते हैं वे मनुष्य मरकर नीच कुल में उत्पन्न होते हैं । नीच कर्म करने वाले होते हैं दरिद्री होते हैं और अल्ल माधु बाले होते है। य अनुष्य अपने शरीर को पुष्ट करने के लिये मांस भक्षण करता है उसक। चित्त सदाकाल हिंसा करने मे ही लगा रहता है और इसलिये वह जीव बार बार नरक में ही उत्पन्न होता है । आगे फिर भी यही बात दिखलाते है हणिऊण पोढछेलं गम्मइ सग्गस्स एस वेयत्थो । तो सणारा सम्वे सम्ग णियमेण गच्छति ।। ४४ ।। हत्वा प्रौढछागं गच्छति स्वर्ग एष वेदार्थः । हि सूनकारा: सर्व स्वर्ग नियमेन गच्छन्ति ॥ ४४ ।। अर्थ- यदि बेदका अर्थ यही है कि मोटाताजी बकरा मारकर खा जाने से यह जीव स्वर्ग में चला जाता है तो फिर संसार में जितने पाप कर्म करने वाले है वे अवश्य ही स्वर्ग में चले जायेंगे। सन्दगओ जइ विण्हु छागसरीरम्मि कि पप सो अस्थि । जं णिताणो वहियो बडप्फडंतो मिकस्सासो ।। ४५ ।। सर्वगतो यदि विष्णुः छागावि शरीरे कि न सोस्ति । यद् निस्त्राणः हतः संतप्यमानो निःश्वासः ॥ ४५ ।।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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