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भाव-ग्रह
वामन, राम, परशुराम बराह वा शकर ये सब दश विष्णु के अवतार माने हैं । इनमें से सबक्री मूर्ती बनाकर भक्ति पूर्वक पूजा करते हैं फिर भला बुद्धिमान पंडीत लोग इन्हीं मत्स्य आदि के मांस खानेका विधान क्ष्यों करते हैं।
आगे इसी बात को दिखलाते हैं ।
किडिकुम्म मच्छरूवं परिमं काऊण विणहु मणिऊण । अच्देयाम्म पुज्जइ गंधक्खयधूवविवेहिं ।। ४१ ॥ किटिकर्ममत्स्यरूपा प्रतिमां कृत्वां विष्णुं मणित्वा । अचेतनां पूजयंति गंधाक्षतधूपदीपः ।। ४१ ।। जो पुण चेयणवतो विण्हू पच्चरव मच्छ किडिरयो । सो हणिऊण य खद्धो दिण्णो पियण्णा पाहिं ॥ ४२ ।। यः पुनः चैतन्यवान् विष्णुः प्रत्यक्ष मत्स्यकिटिरूपः ।
स हत्वा च भक्षितो दत्तः पितृभ्यः पापैः ॥ ४२ ॥
अर्थ- सुअर कच्छप मत्स्य इन सबकी प्रतिमा बनाकर और विष्ण मानकर गंध, अक्षय, दीप, धूप आदी मे उस अचेतन प्रतिमा की पूजा करते हैं। फिर भला मत्स्य, ऋच्छप, मूअर आदि चैतन्य जीवोंमें प्रत्यक्ष विष्णु विद्यमान है फिर भी उन मत्स्यादिक को और उनमें रहनेवाले भगवान विष्णु को मारकर वे पापी अपने पितरों को खाने के लिये देते हैं । यह कंसी बिपरित और आश्चर्य की बात है।
आगे भी यही बात दिखलाते हैं ।
अइ देवो हणिऊणं मंसं गणिऊण गम्मए सग्गं । तो परयं गंतब्ध अवरेणिह केण पावेण ॥ ४३ ।। यवि देवं हत्वा मासे ग्रसिस्था गम्यते स्वर्गम् ।
सहि नरकं गन्तव्यं अपरेगेह केन पापेम 11 ४३ 11
अर्थ- यदि अपने देवको ही मारकर और उसका मांस खाकर यह जीव स्वर्ग में जाता है तो फिर अन्य ऐसे कौन से पाप हैं जिनसे यह जीय नरक जायगा ।