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________________ माव-सग्रह मसेण पियरबगो पीणिज्जइ एरिसो सुई सि । लेहि मसेसं गोत्रं हणिऊण य भक्खियं णियमा ।। मांसेन पितृवर्गः तृप्यते ईदृशो श्रुतिर्येषाम् । तैरशषं गोत्रं हत्वा च भक्षिसं नियमात् ।। २६ ॥ अर्थ- जिन ब्राह्मणों के वेद और स्मृतियों में मांस भक्षण करने स पितर लोग तप्त होते हैं एमा लिखा है तथा जो लोग उन वेद और स्मृतियों को मानते हैं और उसके अनुसार चलते हैं । उनको समझना चाहिये कि वे लोग नियमसे अपने ही घरके बा गोत्रके समस्त जीवों को मारकर खा जाते हैं । -. मनुस्मृतिमें लिखा हैहा मासा मत्स्यमांसेन श्रीन् मासान् हरिणेन तु । और भ्रणथ चतुरः शाकुनेनाथपंच वै !! षण्मांश्च्छागमांसेन पार्षतेण च सप्त वै । अष्टावेणस्य मांसेन रोरवेण नवैव तु ।। दशमासांस्तु तृप्यन्ति वराहमहिषामिषः । शश कूमेज मांसेन मासानेकादशैब तु । मंवत्सर तु गव्येत पयसा पायसेन च । बाधिणसस्य मांसेन तृप्तिर्वादशवार्षिकी ।। काल शाकं महाशकाः खड्ग लोहामिषं मधु । आनन्याय कल्प्यन्ते मुन्नन्यानि च सर्वशः ॥ ग्याज्ञवल्क्य मृति में भी ऐसा ही लिखा है --- यथा --- हविप्यान्नन वै मासं पायसेन तु वत्सरम्. । . मात्स्यहारिणकौरनशाकुनच्छामपार्षतैः ॥ ऐणरौरवबाराह शाशर्मासैर्यथाक्रमम् । मांसबृद्धयाभितृप्यन्ति दत्तैरिह पितामहै: ।। खङगामिषं महाशल्क मधुमुन्यन्नमेंव च । लोहामिपं महाशाकं मांसं वाधिणसष्य च ॥ यददाति गयास्थश्च सर्वमानन्त्यमश्नुते । तथा वर्षा प्रयोदश्यां मवासु च विशेषतः ।।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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