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________________ भाव-संग्रहः लगभग इनसे मिलने जुलते श्लोक मत्स्यपुराण अध्याय १में इलोक मंख्या तीस से पैतीस तक में है । संक्षपसे इन का अभिप्राय यह है कि मत्स्य के मांससे श्राद्ध करना अर्थात् ब्राह्मणों को श्राद्ध में मत्स्य का मांस खिलाने से पितर लोक दो महिने तक तप्त रहते हैं, हिरण के मांस रो तीन महिने तक, मेढाक मांस से चार महिने तक, पक्षियोंके मांस से पांच महिने तक, बकरी के मांस से छ: महिने तक, चितेरा मृगके मांस से सात महिने तक, पण जातिके हिरण के मांस से बाठ महिने तक. भुवारके मांस से नौ महिने तक, जंगली सुअर वा साके मांस मे दश महिने तक और खरगोश के मांस से ग्यारह महिने तक पितुर तृप्त होते हैं । गायके दूध की खीर में बारह महिने तक तृप्त होने है । वार्षीणासके मांस से बारह वर्ष तक पितर तृप्त होते हैं । गडा, महामत्स्य, कालनाक. लाल वर्ण का बकरा आदि से अनन्त तृप्ति होती है । इम प्रकार म्मुतियों में मांस खाने खिलाने का बीमत्स बर्णन है। शतपथ ब्राह्मण में भी लिखा है " राज्ञे वा ब्राह्मणाय वा महोज़ बा महाज वा पचेत् " अर्थात राजा वा ब्राह्मणके लिए वहा बैल बा बड़ा बकरा पकाना चाहिय । बशिष्ठम्मृतिमें भी यही बात लिखी है। आगे इस बातका समर्थन करते हैं। जे कयकम्मपत्ता सुपण हिवंती चउगई घोरे । संसारे गिण्हता संबधा सयल जीर्योह ।। २७ ।। ये कृतकर्मप्रयुक्ताः स्वजना हिण्डन्ते चतुगतिघोरे । संसारे गृह्यन्तः संबंन्धान सकलजीवः ॥ २७ ।। तिरियगई उवण्णा संपत्ता मच्छयाई जे जम्मं । हरिऊण अवरपक्ले सेसि मसेहि विविहिं ।। २८ ।। तिर्यग्गतात्पन्नाः सम्प्राप्ता मत्स्यादि ये जन्म । हत्वा अपरपझे तेषां मांसविविधः ॥ २८ ।। कुण सराहं को पियरे संसारतारणत्येण ।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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