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________________ माव-मंग्रह जे सियरमणासत्ता विसयपमत्ता कसायरसविसिया । एहता वि ते ण शुद्धा गियावासु बंदृता ।। २३ । ये स्त्रोरमपासक्ता विषयप्रमत्ता कषायरसयशिताः। स्तान्त अपि ते न शुखा गृहच्यापारेषु वर्तमानाः ।। २३ ॥ . अर्थ- जो जीव स्त्रियों के भोगो में सदा आसक्त रहते है, विषय भोगों में लगे रहते है और जो क्रोध, मान, माया, लोभ इन चारों कपायों के वशीभूत रहते है ऐसे घर के व्यायार में लगे रहनेवाले पुरुष । स्नान करने मात्रसे कभी शुद्ध नहीं हो सकते । सवस्सेण ण लिसा मायापउरा य जायणसीला । कि कुणइ तेसु ण्हाणां अभंतर मयि पाषाणाम् ।। २४ ॥ सर्ववस्तुना न तप्ता माया प्रभुराश्च याचनाशीलाः । किं करोति तेषां स्नानमभ्यन्तर गृहीत पापानाम् ।। २४ ॥ अर्थ-- जिनको समस्त पदार्थों का दान दे दिया जाय तो भी जो कभी तृप्त न हो, जो सदा काल अनेक प्रकार की मायात्रारी करते रहते हो, जो सदा याचना करते रहते हो और जिन्होंने अपने आत्मामे अनेक पापों का संग्रह कर रक्स्त्रा हो ऐमे जीवों की शुद्धि के लिये मला स्नान क्या कर सकता है अर्थात् कुछ भी नहीं । भावार्थ- यद्यपि स्नान करने से अनेक जीवोंका घात होता है जलमें अनेक सूक्ष्म अस जीव रहते है बिना छने पानीसे स्नान करने से उन समस्त ब्रस जीवों का तथा जलमें रहनेवाले जल कायिक जीवों का घात हो जाता है। इसके सिवाय जिस फर्श पर वह जल गिरता है वहां भी मिट्टी जलके संयोग से अनेक जीव उत्पन्न होकर मर जाते है । इस प्रकार स्नान करने से अनेक प्रकार की हिसा होने पर भी भगवान अरहंत देव की पूजा करने के लिये और सुपात्र वा पात्रों को दान देने के लिये छने हुए पानी से स्नान करने का विधान है। गृहस्थ लोगों को ममस्त कामों मे छना हुआ पानी ही काममें लाना चाहिये । लिखा भी है " यः कुर्यात सर्व कर्माणि वस्त्रपूतेन वारिणा । स मुनिः स महासाधुः स योगी स महाव्रती ।।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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