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________________ भाव-संग्रह तीर्थ है और तपश्चरणा करना तीर्थ है । य सव शरीर जन्म तीर्थ है जो जो मोक्षमार्ग की ओर संकेत करते है, मोक्षमार्ग को दिखलाते है । चित्तं रागादिभिर्दुष्टमलीकवचननर्मुखम् । जीवघातादिभिः कायस्तम्प गङ्गा पराङमुस्त्री ।। अर्थ- जिनका चित्त रागद्वेषसे दुष्ट है, जिनका मुख मिथ्या वचनों से दृष्ट है और जिनका शरीर जीवों का वध वा हिमा करने के कारण दृष्ट है ऐसे जीवों से गङगा भो प्रतिकूल रहती है। आगे तीर्थ स्नान से आत्मा को शुद्धि मानने वालों को कसा फल मिलता है यही बात दिखलाते हैं। पहाणाओ चिय सद्धि जीवा इच्छति जानेण । भमिहिति ते वराया बजरासो जोणि लक्खाइ ।। २२ ।। स्नानादेव शुद्धि जोषा इच्छन्ति ये जडत्वेन । भ्रमिष्यन्ति ते वराकाश्चतुरशीतियोनिलक्षाणि ।। २२ ।। अर्थ- जो जीव अपनी जड बुद्धिके कारण स्नान करनेमात्र से हो . आत्मा की शुद्धि मानते है वे तुच्छ पुरुष । चौरासीलाख योनियों में - परिभ्रमण करते रहते है। आगे कसे जीव कभी शुद्ध नहीं होते सो दिखलाते है : ४ चौरासीलाख योनियांणिच्चदरधादुसत्तय तस्दस विलिदियेसु छच्चेवं । मुरणरयतिरियचउरो चउदस मणुजे सदसहस्सा ॥ नित्य निगादवे सात लाख, इतरनिगोदके सात लाख, पृथिवी कायिक के सात लाख, जल कायिक के सात लाख, अग्नि कायिक के सात लाख, वायु कायिक के सात लाख, वनस्पति कायिक के दस लान्द को एन्द्रियके दो लाख, तेइन्द्रियके दो लाख, बौइन्द्रियके दो लाख, देवों के चार लाख, नारकियो के चार लाख, पंचेन्द्रिय तिर्थत्रों के चार लाख और मनुष्यों के चौदह लाख । इस प्रकार समस्त संसारी जीवों की चौरासी लाख योनियां है।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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