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संकल्प-विकल्प से रहित होकर निर्विकल्प रूप स्वस्वरूप में शाश्वतिक अवस्थान करता है। शाश्वत धाम को प्राप्त करता है। वहाँ पर न रास्ता है, न गमन है, न गमन का कारण है। वह स्वयं अब साध्य-साधक के विचारों से कर्ता-हता पन से परे होकर कृतवात्त्य हो जाता है। स्वात्मोत्थ, निराबाध, अतीन्द्रिय सहज ज्ञानामतपान में सदा के लिये लीन हो जाता है।
उस परम कृतकृत्य, ज्ञानामृतमय, अलौकिक, अपुनरागम पथ के पथिक को अनन्तानन्त त्रिकरण शुद्धिपूर्वक नमोऽस्तु ।
"वन्वे तद् गुण लब्धये " जयतु अपुनरागमस्य पथः ॥ जयतु अपुनरागमस्य पाक्षिकः ॥
जयतु अपुनरागम स्वरूपः ॥ मंगलं भगवान जिनः मंगलं श्री जिमवाणी । मंगलं आत्मसापक: मोक्षमार्गस्तु मंगलम ॥१॥ मंगलं देवादिवीर: भंगलं कुन्थुसरगरः । मंगलं चिन्मयरूप: जीवधर्मस्तु मंगलम् ।। २ ॥
जैन धर्मस्तु मंगलम् ।। वस्तु धर्मस्तु मंगलम् ॥ आत्म धर्मस्तु मंगलम् ।।