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________________ शोका दे रहा है । दीर्घ संसारी है, अनंत दुःख को भोगने वाला है। जो वास्तविक संसार के दुःखो से संवेग-वैराग्य को प्राप्त हुआ है। संसार के दुःखों को हेय त्याज्य समझा है। वास्तविक सुख चाहता है। बह निश्चित चारित्र, जो व्यवहार निश्चयात्म है उरो धारण करेगा । घारक पुरुषों में अनुराग करेगा । उन्हें प्रोत्साहन देगा । जिससे वह अल्प चारित्रधारी धर्मोत्मा यती बरों के सम्मग्दृष्टि वरोके सान्त्वना, सहाय, मार्गदर्शन पाकर उसकी आत्मिक शक्ति बढ़ती जाती है। धीरे-धीरे गमन करते हुए जब आत्म शक्ति बढती जाती एवंकुछ अभ्यास के कारण उन यात्रीओं के स्वरूप को धारण करके उनके साथ गमन करने का प्रयास करता है। अर्थात वह देशवृत्ती-देश चारित्र धारी यथाजात रूप को धारण करने वाले सकल महावत का परिपालन करने वाले मुनियों के साथ गमन करते हुये अनेक वन, नदी पर्वत, कान्तार को उपसर्ग-परिषहों को सहते हुए पार करते हुये आगे बढ़ते जाते है। वह जानता है, मानता है कि रास्ता, लक्ष नहीं ( मोक्ष नहीं ) तो भी उन सब साधन के बिना साध्यरूप स्वरूपमंजिल पर पहूंचा नहीं जा सकता। अतःएवं उन्हीं का अवलम्बन लेना अनिवार्य है । आज नही कल इस भव में नहीं दुसरे भव म अवलम्बन तो लेना ही होगा। कोई औषध सेवन किये बिना रोग ठीक होता है ऐसा कहते हुये साधनरूप बाह्य उपचारों का लोप ही करे तो मूर्खता शिवाय दूसरा क्या कहा जाय ? अतः साध्य कि सिद्धि के लिये सम्यक् साधन-बाह्य-अभ्यन्तर सामग्री आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है। परन्तु वह गमन ( साधन ) रूप क्रिया भी स्वस्वरूप नहीं है। परन्तु जितना-जितना गमन होगा उतना-उतना लक्ष्य ( मंजिल ) समीप होगा । गमन करते-करते अर्थात् चारित्र पालन करते हुये आगे बढ़ेगें तब स्वयं ही पीछे का रास्ता छुढता जाता है । अर्थात् विकल्प अवस्था में करने योग्य क्रियाये स्वयं ही गौण हो जाते है,। जब वह पथिक लक्ष्य भूत स्वस्वरूप में पहूँच जाता है तब वह यात्रीक ज्ञानबन्द रूप अमृत में लीन होकर गमनागमन, रूप समस्त
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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