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________________ (२) चरणानुयोग में गृहस्थों के अनुनत. शिक्षात्रत. द्विग्नतादि चारित्र तथा मुनियोंके महाद्रत, समिति आदि २८ मूलगुण-उत्तरगुणादि का वर्णन है। बारह अंग में प्रथम अंग आचारांग है। बाचारांग का मूल कारण यह है कि बिना आचरण के रत्नत्रय की वृद्धि नहीं हो सकती हैं। तथा केवलज्ञान और मोक्ष की भी प्राप्ति नहीं हो सकी है। इस लिये आचार ( चारित्र) प्रथम एवं मुख्य धर्म है, इसलिये आचागर का वर्णन प्रथम किया गया है। __जल अनुयाग अजीबादि सारा त्वी का वर्णन है उसको द्रव्यानुयोग कहते हैं । द्रव्यामुयोग अति इन्द्रिय विषयों का सूक्ष्म वर्णन करने के कारण नम ज्ञान विरहित प्राथमिक शिष्यों के लिये अत्यन्त दुरह दुरासाध्य एवं क्लिष्ट है। जिस ने विज्ञ अनुभवज्ञ अनेकान्त एवं पारंगत गुरु से क्रमशः प्रथमानयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग, द्रव्यानयोग का अध्ययन मननचिन्तन एवं आचरण कर लिया है वह शिष्य गुरु के तत्वावधान में इस रहस्य पूर्ण नय उपनय से अकीर्ण सूक्ष्म अनुयोग का अध्ययन-मनन-चिन्तन एवं आचरण करके शुद्ध परम उपादेयतत्व स्वातंत्र्य रुपी समयसार को प्राप्त कर सकता है। अन्यथा साधक का विशेष उत्पान होना कठीन ही नहीं अशक्य है। __ जैसे एक विद्यार्थी पहले गुरु के अवलम्बन से वर्ण माला को पढ़ता है उसके पश्चात् पद् वाक्य शास्त्रादि का अध्ययन करते-करते आगे बढ़ता है। उसी प्रकार मुमुक्षु साधक पहले गुरु से प्रथमानयोग पड़कर उससे आत्मा का उत्थान-पतन जानकर संसार शरीर मोग से संवेग, वैराग्य को प्राप्त कर करणानुयोग के माध्यम से विभिन्न भावों को एवं उनके फल को जानकर चरणानुयोग के माध्यम से उत्तरोत्तर विशुद्ध भावों को प्राप्त करता हुआ, दत्र्यानयोग में वर्णित स्व शुद्धात्म तत्त्व को प्राप्त कर लेता है। यह चारो अनुयोगों का क्रमः एवं विषय है। अब तक पहले-पहले के तीन अनुयोग रूप परिणमन नहीं करते है तब तक चतुर्थ अनुयोग में वर्णित शुद्ध तत्त्व मी अत्यन्त दूर हैं। समयसार महान आध्यात्मिक योगी पुरुष आध्यात्मिक कांतिकारी एवं मूल आम्नाय के मुख्यस्तंभ स्वरुप प्राचार्य कुन्दकुन्द के अनेक काखमय में समयसार अन्यतम कृति है। इस शास्त्र में आचावर्ग में समयसार स्वम्प शुद्धात्म द्रश्य सिद भगवान का वर्णन किये है।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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