SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समयसार का सार (णमो समयसाराणं) शास्त्राध्ययन क्रम जैनागम रूपी महासमुद्र के चार भेद है। (१) प्रथमानुयोग (२) करणानुयोग (३) चरणानुयोग (४) द्रव्यानुयोग । ये चारों अनुयोग सर्वज्ञ, वीतराग, हितोगदेशी अरिहन्त भगवान की दिव्यध्वनि से निसृत होने के कारण मुत्य है, तथ्य है, और उपादेय है। चारों अनुयोगो का अध्ययन भनन, चिन्तन, एवं उपलब्धि क्रमश: सेही होती है। यथा अथेष्ट प्रार्थना प्रथमं करणं परणं द्रव्यं नम: 1 शास्त्राभासो- - - .. - ॥ पहले प्रथमानुयोग का अध्ययन, मनन, चिंतन, प्राथमिक साधक करें। उसके बाद करणानुयोग, चरणानुयोग एवं द्रव्यानुयोग का भी करें। अर्थात साधका पूर्व-पूर्व अनुयोग एवं अपनी अवस्थानुसार कर्तव्य में दक्ष होते हवं उत्तरोत्तर अनुयोगों का अध्ययन, मनन, एवं अनुकरण करें। प्रधमानुयोग में पुण्य पुरषों का चरित्र बोधि समाधि आदि समाचिन विषय का वर्णन है । उसको पढ़कर प्राथमिक साधक महापुरुषों के चरित्र के माध्यम स धर्म को सरल, सहन अवगत कर लेता है , इस लिये इम को प्रथम - अनुयोग - प्रथमानुयोग प्राथमिक साधकों का अनुयोग करणानयोन जिस अनुयोग में लोक, अलोका, युग परिवर्तन. गुणस्थान. जीवसमास आदि का वर्णन हैं 1 उसे करणानुयोग कहते हैं इस में आधिकत्तर गणित का अवलम्बन लेकर वर्णन हैं । इसमें सूक्ष्म रुप से गणितिक पद्धति से जीवो के विभिन्न अवस्थाओं का सूक्ष्म एवं अत्यन्त प्रमाणिक वर्णम है। इममें जो भावों का वर्णन हैं वह भाव अन्य अनुयोग के लिये मानद स्वरुप है। भाव किस तरह उत्तरोत्तर जान बुद्धि को प्राप्त होती है उसकी सूक्ष्म गणितिक एवं वैज्ञानिक वर्णन हैं। इस अनुयोग से ही अन्य तीन अनुयोग के वणित भाबों कि परीक्षा कि जाती है । यदि करणानुयोग इन भावों को सत्य साबित करता है तो सत्य है अन्यथा मिथ्या है। इसमें किसी प्रकार साहित्यिक, मनोरंजक, अतिश्योक्ति उपमा, अलंकारात्मक वर्णन मही है।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy