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________________ (३) समय पहुई प्राक्षतं सम्यम् अयः बोधो यस्य भवति का समय आत्मा, अपना समं एकी भावनायनं गमन समयः । प्रामृतं सारं सार: शुद्धावस्था सामवस्या मनः प्राभृतं ममय प्राभृत, अथवा समय एव प्राभूत समय प्राभूत. स. सार. जयसेनाचार्य ह. दु./गा.. समय प्राभत ग्रन्थ को-सम्यक-समीर्च न अर्थ बोध, ज्ञान है जिस के वह समय अर्थात, आत्मा । अथवा समम की भावनायनम, समनं 'ममयः'' अर्थात् एकमेक रुप से जो गमन उसका नाम समय: प्राभूत अर्थात् सार शुद्धावस्था इस प्रकार समय नाम आत्मा उसका प्राभूत्त अर्थात शुद्धावस्था वही हुआ समय प्राभृत । अथवा समय जो है वही प्रामृत सो समय प्राभृत । स्वरुपाद प्र च्यवनान् टकोत्कीर्णचित्स्वभावो जीवो नाम पदार्थ; समय समयत एकत्वेन युगमज्जानाति ।। स. सा. अमृतचन्द्र आचार्य । गा. २ स्व स्वरुप से च्युत न होने से टकोत्कीर्ण चित्स्वभावबाला जीव नाम पदार्थ है वहीं समयसार हैं । एक काल में ही जानना और परिणमन करना ये दो किराये जमा हो वस साय है। " स्वस मन एव शुद्धात्मनः स्वरूप न पुनः पर समय" स. सा. जयसेनाचार्य त. वृ./गा. ३ स्वसमय ही पद्धारमा का स्वस है, पर समय खात्मा का स्वरुप नहीं । अर्थात सुद्धात्मा सिद्ध परमेष्ठी ही स्बसमय है । अन्य समस्त संसारी जीव परत मय है। बहिरंतरप्य भेयं पर समयं भग्णय जिणिदेहि । परमप्पो सगसमय तब्भय जाण गुण ठाणे ।। मिस्सोति बाहिरप्पा तरतमया तुरिय अंतरप जहण्णा । संतोति मज्यिमंतर रवीणुतम परम जिण सिद्धा ।। रयणसार । कुन्दकुन्दाचार्य / गा. १४८-१४९ जिनेन्द्र भगवान द्वारा बहिरारमा एवं अंतरात्मा को परसम्म कहा गया है, परमात्मा स्वसमय है उसको गुणस्थान के अनुसार जान लेना चाहिये। मिथ गणस्थान पर्यन्त अर्थात मिथ्णत्त्व, सासादन, सम्यमिथ्यात्व गुणस्थानवी जीव तारतम्यसे बहिरारमा है। चतुर्थ गुणस्थानवर्ती सम्यग्दृष्टि
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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