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________________ १५८ लगा हुआ सायून को भी स्वच्छ पानी से घोकर निकाल देते है। वस्त्र । म्वच्छ होने के बाद उसको टिनोपाल मे डाल के उसको चमकाते है।। वम्न मे साबून और पानी अलग बस्तु है ( पर द्रव्य है ) जो भी बिना पानी और साबून मलिन स्त्र स्वच्छ नहीं होता है । परन्तु स्वच्छ होने के बाद साबुन और पानी का आवश्यकता नहीं रहती है । मलीन अवस्था में दिनोपाल बस्त्र को लगाने पर उसमें चमक नही आ सकती है। इसी प्रकार आत्माको स्वच्छ करने के लिये शुनभा-रुपी पानी और पुण्यरुपी साब'न चाहिये इसके माध्यम से मलीन पापात्माको पवित्र पुण्यात्मा होने के बाद शक्ल ध्यानरूपी टिनोपाल से उसको केवलज्ञान रपी प्रकाश से चमकना चाहिये । जब तक आत्मा को शुभ भाव और पुण्य से स्वच्छ नहीं करते तव तक शुक्लध्यान रुपो टिनोपाल का कोई प्रकार परिणाम नहीं हो सकता है । वस्त्र स्वच्छ होने के बाद उस वस्त्र में स्थित पानी को भी निकाल देते है। इसी प्रकार अयोग केवली १४ वे गुणस्थान के आवस्था में व्युपरित त्रिया निवृत्ती रुपी परम शुक्ल ध्यान से पुण्यरूपी कण को भी सुखाकर पृथक करना चाहिये तब जाकर भारमा निरंजन निष्कलंक होता है। अहो पुष्यबन्ता पुंसा काट वापि सुखायते । तस्मा अध्यः प्रयत्नेन कार्य पुष्यं जिनोदित ।। अर्थ- अहो आश्चर्य की बात है की पुण्यवान के लियं कष्ट भी सुखकर हो जाता है इसलिये हे भव्य जिनेंद्र भगवान द्वारा प्रतिपादित पुण्य को तुम प्रयलवकः करो। यस्य पुण्यं च पापं च फिलं गलति स्वयम । स योगो तस्य निर्वाण न तस्य पुनराध ॥ २४६ ।। टीका- यस्य च कर्मणां स्वकार्यमकुर्वतामेव विश्लेषो भवति स त्र योगीयाहयस्येत्यादि । यस्य परम वीतरागस्य । निःफल स्वकर्यम अकुर्वत सत । गलति उग्र तपःसामर्थ्यदुदयमानीय जीर्यते । न पुनरास्रवी न पुनः कर्मणागमनम् सबर एव भवतीत्यर्थ: ।। २४६ ।। अर्थ-जिनका कर्म उदयमे आकार भी बिना फल दिये खिर जाते है बस योगी है। वह परम वीतरागी होते है। परन वीतरागी मुनी उरा
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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