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________________ १५१ डालना पस्वी साधुओं की निन्दा करन झूठे अपवाद लगाना । व्रत I 1 पुरुषों के भी व्रत, नियम नियमों का भंग करना | और दूसरे धर्मात्म 4 क्रियाओं को करने न देना । इसी प्रकार अनेक धर्मनीति विरुद्ध कार्य करना यह सब असता वेदनीय कर्म बन्ध के कारण है । सुमा शुभ पाप का फल दुःख व कुगतियों की प्राप्ति हिंसादिवामुपावद्य दर्शनम् ।। ९ ।। दुःखमेव वा ॥ १० ॥ हिंसादि पांच दोषों मे एहिक और पारलौकिक उपाय और अवत्र का दर्शन भावनें योग्य है । अथवा हिंसादिक दुःख ही है, एसी भावना करनी चाहिये । ( स. सि. w अध्या. ६ सु. ९- १० प्र. सा. मु. - १२ ) - असुहोवयंण आदा कुणरो तिरियो भविय बेरहयो । युक्त सहस्लेहि सदा अभिधुदो भर्मादि अच्चंता || अशुभ उदय से कुमानुष, तिर्यंच और नारकी होकर हजारों दुःखों से सदा पीडित होता हुआ संसार मे अत्यन्त भ्रमण करता है । ( व. १ - १, १, २ - १०५-५ ) काणि पावफलाणि । णिरय- तिरिय कुमाणुस जाइ-जरा-मरणवाहिणादालिद्दादीणि । अहिंसाया च भूतानाममृतसत्वाय कल्पते ण हिन्दु धम्मो वयाविशुद्धो ॥ घति क्षमा नमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः । धी विद्यासत्यमक्रोध दशकं धर्मलक्षणम् ॥ ( मनुस्मृति ) Religion is the manifestation of divinit in man. ( विवेकानन्द ) यतोऽभ्युदयनिः श्रेयससिद्धिः सधर्मः ॥ ( वैदिक ) Religion is the pursuies and justice and abdication of violence. राधाकृष्णन )
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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