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डालना पस्वी साधुओं की निन्दा करन झूठे अपवाद लगाना । व्रत
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पुरुषों के भी व्रत, नियम
नियमों का भंग करना | और दूसरे धर्मात्म 4 क्रियाओं को करने न देना । इसी प्रकार अनेक धर्मनीति विरुद्ध कार्य करना यह सब असता वेदनीय कर्म बन्ध के कारण है ।
सुमा शुभ
पाप का फल दुःख व कुगतियों की प्राप्ति
हिंसादिवामुपावद्य दर्शनम् ।। ९ ।। दुःखमेव वा ॥ १० ॥
हिंसादि पांच दोषों मे एहिक और पारलौकिक उपाय और अवत्र का दर्शन भावनें योग्य है । अथवा
हिंसादिक दुःख ही है, एसी भावना करनी चाहिये । ( स. सि.
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अध्या. ६ सु. ९- १० प्र. सा. मु. - १२ )
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असुहोवयंण आदा कुणरो तिरियो भविय बेरहयो । युक्त सहस्लेहि सदा अभिधुदो भर्मादि अच्चंता ||
अशुभ उदय से कुमानुष, तिर्यंच और नारकी होकर हजारों दुःखों से सदा पीडित होता हुआ संसार मे अत्यन्त भ्रमण करता है । ( व. १ - १, १, २ - १०५-५ )
काणि पावफलाणि । णिरय- तिरिय कुमाणुस जाइ-जरा-मरणवाहिणादालिद्दादीणि ।
अहिंसाया च भूतानाममृतसत्वाय कल्पते ण हिन्दु
धम्मो वयाविशुद्धो ॥
घति क्षमा नमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः ।
धी विद्यासत्यमक्रोध दशकं धर्मलक्षणम् ॥ ( मनुस्मृति ) Religion is the manifestation of divinit in man. ( विवेकानन्द ) यतोऽभ्युदयनिः श्रेयससिद्धिः सधर्मः ॥ ( वैदिक ) Religion is the pursuies and justice and abdication of violence.
राधाकृष्णन )