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________________ s परन्तु उससे अत्यन्त आत्मविशुद्धि होती है। सम्यग्दर्शन की निर्मलता बढती है, साविजय पुण्य बन्ध होता है, जो कि परंपरा मोक्ष का कारण है, इस महा फल के आग जघन्य पाप निकल जाता है । अशुभ भाव fense कोहrsa मा नासु परखवाए । मिच्छारिए मए दुर्राहणि सुसु असुहलेसेसु ॥ विकासला असुसु वसु । सल्लेसु गारवेसु य जो बठ्ठइ अनु भायो सो ॥ | रणसार - गा. ६२-६३ ) P t 1 · हिंसादिकमे कोधादिमें मिथ्याज्ञानमें, पक्षपात में, मत्सर भाव में मदमें, मिवाभिप्रायमत में अशुभ श्याम, त्रिकथ में आनं-रोद्र ध्यान में अशुभ कारण दण्डमे, निध्यामाया - निदान झल्यगें, चार प्रकार मदमें जो प्रवर्तमान होता है, उसे अशुभ भाव कहते है । इन्हीं अशुभ भावों ने पाप का आश्रव होता है । दुःखं शोको वस्ताः कवनं परिवेदनं । परात्म द्वितयस्यानि तथा व परशुन || छेदनं भेदनं चैव ताडनं बनतं तथा । तर्जनं भत्र्सन चंब सद्यो विशसनं तथा ।। What is the Religion— धम्मवत् सहावी उत्तमसमाधि दसविहो धम्मो । रयणत्तयंच धम्मो जोवाणं रखणं धम्मो || धम्मो मंगलमूविक अहिंसा संयमो तवो । देवा वि तरल पणमंति जस्त धम्मे सया मणो ॥ पवित्री क्रियते येन येनय त्रियते जगत् नमस्तसै दयाद्वाय कर्मकल्पांपिाय ये ॥ संसार दुःखन: सहवान् यो घरत्युक्त मे सुखे स धर्मः । इन्द्रियाणां निरोधने राणद्वेषक्षयणं च ॥ ( आगे पृष्ठ १५१ पर देखिए )
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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