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________________ १४८ करता है उसके निश्चय से पाप होता है, उस पाप के कारण से बह जीव मंसार में परिभ्रमण करता है । पर परा से जा माक्ष के कारण और साक्षात पुण्य के वन्ध के कारण, जो देव शास्त्र गुरु है इनकी जो निन्दा करता है, उसके नियम से पाप होता है, पान से दुर्गतियों में भटकता देवहं इत्यादि । देवह सत्यहं मुणिवरहं जो विहेमु करेइ देशास्त्र, मुनीनां साक्षातगुण्य बघ हेतु भूतानां परंपरयः मस्ति कारण भूतानां च योऽसौ विद्वषं करोति । तस्य कि भवति । णियमे पाउ हदेई तसु नियमेन पापं भवति तस्य । येन पाप बन्धेन किं भवति । जे ससाह भमेह यं पापेन संसार भ्रमतीति । तद्यया । निज परमात्म पदार्थीपलम्भरुचि रुप निश्रय सम्यक्त्वकारणस्य तत्वार्थश्रद्धान' रुप व्यवहार सम्यक्त्वस्य विषयभतानां देवशास्त्रपतीनां योऽसौ निन्दा करोति स मिथ्यादाटीभवति । मिथ्यात्वेन पापं बध्नाति, पापेन चतुर्गति संसारं भ्रमतीति भावार्थ: ।। ६२ ।। निज परमात्म द्रव्य की प्राप्ति की रुचि वही निश्चय सम्यक्त्व उसका कारण तत्वार्थ श्रद्धान रुप व्यवहार सम्यक्त्व उसके मल अरहत देव, निर्ग्रन्थ गरु और दयामयी धर्म इन तीनों की जो निंदा करता है वह मिथ्यादृष्टी होता है। वह मिथ्यात्व का महान पाप बांधता है, उस पाप में चतुर्गति मंसार मे भ्रमता है। सम्यग्दर्शम घातक व्यक्ति जिनाभिषेके जिन प्रतिष्ठा जिनालथे जैन सुपात्रतायाम । सावधलेशो बदते स पापो स निन्दको दर्शनघातकश्च ।। ( सार-संग्रह) जो व्यक्ति जिनेन्द्र भगवान का अभिषेक, चत्य चैत्यालय निर्वाण प्रतिष्ठा एवं मुपात्र दान में पाप होता है, ऐसा जो प्रतिपादन करता है वह जिन धर्म का निदक है, सम्यक् दर्शन का घातक है, उपरोक्त त्रिया. ओं में कुछ आरम्भादि कारणों से अत्यन्त कम पाप बन्ध होता है -
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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