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________________ १४२ बहु सम्पूर्ण द्रव्यश्रुत के ज्ञान का ज्ञाता नहीं होते हुए भी वह भाश्रुत का ज्ञाता होता है । परन्तु सांप्रतिक पंचम काल मे शुक्ल ध्यान रुप निर्विकल्प स्वसंवेदन ज्ञान नहीं है इसलिये वर्तमान मे कोई भावश्रुत केवली भी नहीं है । उसी प्रकार द्रव्यश्रुत केवली भी नहीं है। पचम काल मे अन्तिम श्रुतकेवली भद्रवाह हुये हैं । उसके बाद श्रुतकेबली रुप सूर्य का अस्त हो गया । शुभोपयोगी रूप श्रुतकेवली नहीं है । क्योंकि शुभोपयोगी निर्विकल्प परम समाधि में लीन होकर आत्मा को पूर्ण रुप अनुभव नहीं कर सकता है । शुभ क्रियाओं से कर्म निर्जरा आपालया कम्म, विज्जावच्चं च वाण पूजाई । जे कुणइ सम्मट्ठी, तं सम्ब णिज्जरा णिमितं ॥ देव बन्दनादि सामायिक कर्म मुनियों की सेबादि दान कर्मादि ओ शुभ क्रियायें सम्यग्दृष्टी जीव करते है उससे कर्म की निर्जरा होती है । समतुप्पलो वि य सायय विरये अनंत कम्मंसे । दसव मोहक्लबए कसाथ जवसामए य जवसते || खवये य खीण मोहे जिणे य नियमा हवे असंज्जा | तब्बिरिओ कालो संखेज्ज गुणाए सेबीए || तीनों करणों के अन्तिम समय में वर्तमान विशुद्ध मिथ्यादृष्टी जीव के जो गुणश्रेणी निर्जरा का द्रव्य है उससे प्रथमोपशम सम्यक्त्वकी निर्जरा होनेपर असंयत सम्यग्दृष्टी में प्रति समय होनेवाली गुणश्रेणी निर्जरा का द्रव्य असख्यात गुण है। उससे देश विरति के गुणश्रेणी निर्जरा का द्रव्य असंख्यात गुणा है। उससे सकल संयमी के गुणश्रेणी निर्जरा का द्रव्य असंख्यात गुणा है। उससे अनन्तानुबन्धी कि संयोजना करनेवाले के गुणश्रेणी निर्जंग का द्रव्य असख्यात गुणा है। उससे दर्शन मोह की क्षपणा करनेवाले जीव के गुणश्रेणी निर्जरा का द्रव्य असंख्यात गया है। उससे अपूर्वकरणादि तीन गुणस्थानवर्ती उपशन जीव के गुण श्रेणी निर्जरा का द्रव्य असंख्यात गुणा है । उससे उपशांत कषाय जीब के गुणश्रेणी निर्जरा का द्रव्य असंख्यात गुणा है। उससे अपुर्वकरण
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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