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सपलागम पर गया सुद के लिणाम सुपसिद्धा जे । एवाण बुद्धि रिद्धि चोट्सपुवित्त णामेण ||
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( ति. प. अ. ४ मा १००१ )
जो महर्षि संपूर्ण आगम के पारंगत है और श्रुत केवली नाम से प्रसिद्ध उनके चौदह पूर्व नामक ऋद्धि वृद्धि होती है।
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णमो चोद्दस पुन्वीपाणं ।। १३ ।। ६. ४-१-१३
'सयलसुदणाण धारिणो चोत्रसपुब्बियो " अर्थात चौदन पूर्व के धारियों को नमस्कार हो । समस्त श्रुत ज्ञान के धारक चौदह पूर्वी कहे जाते है ।
जो चौदह पूर्व के धारक महामुनि होते है, वें मिध्यात्व को प्राप्त नहीं होते है और उस भत्र में असंयम को भी प्राप्त नहीं करते है ।
श्रुतकेवली भावलिंगी चौदह पूर्व धारी महामुनी ही होते है ! संयम रहित चौदह पूर्व धारी मी श्रुतकेवलो नहीं होते है । जैसे कोई देव चौदह पूर्व के धारी क्षायिक स यग्दुष्टी होते हुये भी वे श्रुत केली नही हो सकता है। क्योंकि उनके संयम का अभाव है । जो महामुनि भावश्रुत के माध्यम से स्वसंवेदन ज्ञान रूप निर्विकल परमसमात्रि के बल से आत्मा को सम्पूर्ण ओर से जानता है, अनुभव करता है, भले
बुराग्रही एवं सत्याग्रह
आग्रही बत निनीषति युक्ति यत्र तत्र मतिरस्य निविष्ट । पक्षपात रहितस्य तु युक्तिर्यत्र तत्र मतिरेति निवेशन ।। दुराग्रही मनुष्यने जो पक्ष निश्चित कर रखा है वह युक्ति को । उसी ओर ले जाना चाहता है, किन्तु जो आग्रह से रहित होकर freer बुष्टों से विचार करना चाहता है वह युक्ति का अनुसरण करके उसके उपर विचार करता है, और तदनुकूल वस्तुस्वरूप का निश्चय करता है । दुराग्रही - Mine is Right. मानता हूँ । सत्याग्रहो " Right is Mine " मानता है ।