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________________ आपली कहते है। कौन कहते है ? लोकालोक के प्रकाशक परम ऋषी हते है । इस प्रकार इस गाथा के द्वारा निश्चय श्रुत केवली का लक्षण हा गया है। किंतु जो पुरुष द्वा शांग द्रव्यश्चत ज्ञान को परिपूर्ण रुप जानना है उसे जिन भगवान द्रव्यश्रुत केवली कहते हैं। क्योंकि द्रव्यश्रुत के आधार की उत्पन्न हुआ जो भ वश्रुत है वह आत्मा ही है जो कि आत्मा की मदित्ति को विषय करनेवाला और पर की परिच्छित्ति को विषय कहने बाला होता है इसलिये वह द्रव्यश्रुत केवली होता है। इसका अभिप्राय बह हुआ कि जो भावश्रुत रुप स्वसंवेदन ज्ञान के द्वारा केवली अपनी खात्मा को जानता है वह निश्चय श्रुत कवली होता है । किनु जो ६.अपनी शुद्धात्मा का अनुभव नहीं कर रहा है न उसकी भावना कर रहा है। केवल बहिविषयक द्रव्यश्रुत के विषयभूत पदार्थों को जान । है वह व्यवहार श्रुत चे वली होता है । इस पर शिष्य कहता है कि शका:- फिर तो वसंवेदनज्ञान के बल से इस काल में भी अत | अवलं हो सकता है ऐसा समझना चाहिये क्या ? ___समाधानः- इसका समाधान यह है कि, इस काल से अनवली . नहीं हो सकता है । क्यों क जैसा शुक्लध्यानात्मक स्वसंवेदन ज्ञान पूर्व पुरुषों को होता था वैसा इस समय नहीं होता है । किन्तु इस काल मे ता यथा गेग्य धर्मध्यान ही हो सकता है। मोइय अपों जाणिएण जगु जाणियउ हवेइ । अप्पर फेरइ भावडइ बिबिउ जेण इसेह ।। ( म. प्र. अध्या, २ - गा. १९) जोइक अप्पे जाणिएण हे योगिन आत्माना ज्ञातेन । किं भवति । मागु जाणिय उ हवइ जगम् त्रिभूवन ज्ञातं भवति ! कस्मात् । अरपाई केर भावडइ विविउ जण कसेइ आत्मनः संबन्धिान भ.वे केवलज्ञान पर्याये विम्बितं प्रतिबिम्बितं येन प्रकारेण वसति तिष्ठतीति । अयमर्य:- स्वरुप ज्ञातं भवति । कस्मात् । यस्मादायव पाण्डवादयो
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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