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________________ जो हि सुदेणभिगच्छति अाणमिणं तु केवलं सुद्धं । तं सुद केवलिमिसिणो भणप्ति लोगप्पदीवयरा ।। ( स सा. -- गा. १०) तात्पर्यवृत्तिः यः कर्ता भावश्रुतेन स्वसंवेदज्ञानेन निर्विकल्प समाधि ना करनभूतेन अभिसमज्जानात्यनुभवति के आरमान इमं प्रत्यक्षी भूत पुनः कि विशिष्टं असहाय रागादि रहितं पुरुषं निश्चयश्रुत केवलिनं परम ऋषयः कथयति लोक प्रदीप करा: लोक प्रकाशकः इति । अनया गाथथा निश्चयश्रुत केवलि लक्षणं । अथ य: कर्ता द्वादशांग द्रव्यश्रुतं सर्व परिपूर्ण ! जानाति व्यवहार श्रुतकेलिनं तं पुरुष आहु शुवन्ति के ते ? जिनाः । सर्वज्ञाः। कस्मादिति चेत यस्मात् कारणात् द्रावताधारेणोत्पन्नं भावभुत । ज्ञानं आत्मा भवति कथभूत कात्म सवित्ति विषयं परमरिच्छित्ति विपर्य : वा तस्मात् कारणात द्रव्यश्रुत के वलि स भवतीति । अयमत्रार्थः-यो भावश्रुतरुपेण स्वसंवेदन ज्ञानेन शुद्धात्मानं जानाति स निश्चय श्रुत केबलि भवति । यस्तु स्वशुद्धात्मानं न सबेदति न भावयति बहिविषयं द्रव्यश्रुतार्थं जानाति स व्यवहार श्रुत केवलि भवतीति । ननु तहि स्वमवेदन जानबलेनास्मिन् कालेपि श्रुतकेवलि भवति ? तन्न यादश पूर्वपुरुषाणां शुक्लध्यानरुपं स्वसंवेदनशानं तादृशमिदानी नास्ति किंतु धर्मध्यान योग्यमस्तित्यर्थः । ( स. सा. त. पृ. १०) जो द्वादशांग के द्वारा अपनी शुद्धात्मा को अपने अनुभव में लाता है उसे सर्वज्ञ भगवान निश्चयश्रुतके वली कहते है। और उसी श्रुतज्ञान के द्वारा जो संपूर्ण पदार्थों को जानता है उसे जिन भगवान द्रव्यश्रुत कैवली कहते है। जो जीव कर्ता ( करणता ) को प्राप्त हुए निर्विकल्प समाधिरुप स्वसंवेदन ज्ञानात्मक भावश्रुत के द्वारा पूर्णरूप से अपने अनुभव मे लाता है, उस प्रत्यक्षीभूत अपनी आपकी आत्मा को सहाय रहित अर्थात निरालम्ब, रागादि रहित अनुभव मे लाता है उस पुरुष को निश्चय श्रुत
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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