________________
१३३
है। यह रौद्र ध्य न मिथ्यादृष्टी जीवों के लिये नरकमति का कारण को भी जिस सम्यग्दृष्टीने नरया, 4 की है उसको छोटकर अन्य पादुष्टीयों को नरकगति का कारण नहीं है । क्योंकि सम्यग्दृष्टीयोंके शुद्धात्मा ही उपादेय है । इसलिये विशिष्ट धान के वल से नरक का कारण भूत जो तीन संक्लेश नी होता है।
आज्ञा विचत्र - अपाय विचय - वियाफ विचय एवं संस्थान विचय चार भेदों से भेइ को प्राप्त हुआ धर्म ध्यान न्यूनाधिक वृद्धि के क्रम अविरत सम्यग्दृष्टी, देशविरत, प्रमत्त संयत और अप्रमत्त संयत गुणमानवी जीवों को उत्पन्न होता है। मुख्यवृत्या पुण्यबन्ध कारण मपि परया मुक्ति कारणं चेति धर्मध्यानं " । यह धर्मध्यान मुख्यरूप में न्य बन्ध का कारण है तो भी प:परा से मोक्ष का कारण है ।
शाविचय धर्मध्यान1 अल्प वृद्धि का धारक विशेष ज्ञान के धारी गुरुके अभाव मे शुद्ध लावादि पदार्थों की सूक्षमता होने पर भी जिनदेव के आज्ञानुसार तत्त्वों को ग्रहण करना अर्थात श्रद्धान रखना माजावित्र र धर्मव्यान है । न सक्षम जिनोदितं तत्त्व हेमियन हन्यते ।
आज्ञा सिद्धं तु तद् ग्राहां नान्यथा वादिनो जिनाः ॥
थी जिनदेव का कहा हुआ जो सूक्ष्म तत्त्व है वह हेतु अर्थात तर्क सिखंडत नहीं हो सकता । इसलिये जो सूक्ष्म तत्व है उसको आज्ञानुसार प्रहण करना चाहिये क्योंकि जिनेंद्र देव अन्यथावादी अर्थात झूठा उपदेश नहीं देनेवाले है | इस लिये भगवान की वाणी को प्रमाण मानकर जो पदार्थों का निश्चय करता है । इसे आज्ञा बिचक नामक धर्मध्यान कहते
माय विषय धर्मध्यान -
भेद तथा अभंदरुप रत्नत्रय की भावनाके बल से अपने अथवा अन्य
ज्ञानमय सुखाकर चैतन्य विभूः सर्वज्ञम् । मम सर्वस्य गुरु प्रभु पिता माता नमाम्यहम् ।। ११ ।।