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इष्टानिष्ट रुप जो इन्द्रियों का विषय है उनमें राग-द्वेष और मोह को । मत करो।
समस्त राग-द्वेष-मोह से उत्पन्न हुए विकल्पों के समूह में रहित जो निज परमात्मा के समूह की भावना से उत्पन्न हुआ परमानन्द रुप एक लक्षण सुखामृत रस उससे उत्पन्न हुई और उसी परमात्मा के सुख के आस्वादन में तत्पर हुए जो मग्न हुई परम कला अर्थात परम सवित्ति है । उस मे स्थित होकर हे भव्य जीवो ! मोह-राग-द्वेष को मत करो।।
शंका:- किन मे राग-द्वेष-मोह मत करो ?
समाधान:- माला, स्त्री, चन्दन, ताम्बुल आदिरूप जो इन्द्रियों के विषय मे राग-द्वेष-मोह मत करो । यदि तुम परमात्म के अनुभव में निश्चल चित्त को जानना चा ते हो तो नाना प्रकार जो ध्यान है उसकी । सिद्धि के लिये नित्त से उत्पन्न होने वाला शुभाशुभ विकल्पों का समूह जिसमें विचित्त ध्यान, उस विचित्त ध्यान अर्थात निर्विकल्प ध्यान के लिये राग-द्वेष-मोह मत करो।
इष्ट वियोग-अनिष्ट संयोग रोग को दूर करने तथा भोगोपभोगों के कारणों की इच्छा रखने रुप भेदों से चार प्रकार का आतं ध्यान है। यह आर्त ध्यान न्यूनाधिक भाव से मिथ्यादृष्टी गुणस्थान को आदि । लेकर प्रमत्त विरत गुणस्थान पन्ति जो छह गुणस्थान है उनमें रहनेवाले जीवों के होता है। और यह आत ध्यान यद्यपि मिथ्यादष्टी जीवों के निर्ग्रन्थ गसि के बन्ध क कारण होता है तथापि जिस सम्यग्दृष्टी ने पहले तिर्यंच गति की आयु को बांध लिया है उस सम्यग्दृष्टी जीव को छोडकर अन्य जो स. यादृष्टी जीव है उनके तिथंच गति के बन्न का कारण नहीं है । क्योंकि सम्यग्दाटी जीवों के निज शुद्धास्मा के ग्रहण करने की भावना के वल से तिर्यंचगति का कारणरुष जो संक्लेश भाव है उसका अभाव है।
हिंसानन्द, मृषानन्द, चौर्यानन्द और परिग्रहानन्द या विषयसरक्षणानन्द के भेद से रोट्र ध्यान चार प्रकार का है। यह न्यूनाधिक भाव से मिथ्यात्व गुणस्थान से पंचम गुणस्थान पर्यंत रहनेवाले जीवों के उत्पन्न