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________________ ११८ परम ध्यानों के पर्यायवाची शब्द: मा चिठ्ठह्मा जंप मा चिन्तह कि वि जेण होइ थिये । अप्पा अप्पामि रओ इणमेव परं हवे असणं ॥ नित्य निरंजन निष्क्रिय निज शुद्धात्मानुभूति प्रतिबन्धक शुभाशुभ चेष्टारुप कायव्यापारं तथैव शुभाशुभान्तर्वहि जल्परुप वचन व्यापारं तथैव शुभाशुभविकल्प जाल रूपं चित्तव्यापारं च किमपि मा कुरुते हैं। विवेकि जनः । येन योगत्रय निरोधेन स्थिरो भवति । कथम्भूतः स्थिरो भवति ? सहज शुद्ध ज्ञान दर्शन स्वभाव परमात्म तत्त्व सम्यक् श्रद्धान्ज्ञानानुचरण उपामेव रत्नत्रयात्मक परम समाधि समुद्भूत सर्वप्रदेशाल्हाद जनक सुखास्वाद परिणति रूहिते निजात्मनि रतः परिणतिस्तल्लीयमान स्तच्चित्तस्तन्मयो भवति इदमेवात्म सुखरुपे तन्मयत्वं निश्चयेन परमुत्कृष्टं ध्यानं भवति । तस्मिन् ध्याने स्थितानां यद्वीतरागं परमानन्द सुखं प्रतिभाति, तदेव निश्चय मोक्षमार्ग स्वरुपम् 144 तच्च पर्याय नामान्तरेण तदेव शुद्धात्म स्वरूपं स्वात्मोपलचि लक्ष सिद्ध स्वरूप संवेदन ज्ञान तदेव शुद्ध चारित्र तदेव शुद्धात्म द्रव्य स एवात्म प्रतीति स एव आत्म संवित्तिः स एव शुद्धात्मानुभूति स एव परम समाधि स एव शुद्धात्मपदार्थम अध्ययन रुपं एक निश्चय मोक्षोपायः स एव चैकायचिन्ता निरोध; स एव सुद्धोपयोगः स एव परम योग; स एव भूतार्थ: स एव निश्चय पंचाचार: स एव समयसार स एव अध्यात्मसार: तदैव समतादि निश्चय पडावश्यक स्वरुपं, तदेवानंद रत्नत्रय खलयं, तदेव वीतराग सामायिक स एवं परमात्म भावना स एव शुद्धात्मभावनोत्पन्न सुखानुभूति रूपं परम कला तदैव परमामृत परम धर्म ध्यानं - तदेव शुक्ल --- -NV --- --- आत्मा शुद्धात्म स्वरूपं तदेव प्रारम तदेव निर्मल स्वरुपं तदेव स्व तदेव परमात्म दर्शनं --- --- ---
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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