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________________ ९९ गाथार्थ :- शुद्ध आत्मा रस रूप, ग रहिल है । संसारी जीव के समान शुद्ध जीव प्रगट नहीं है इसलिये अप्रगट है। चैतन्य गुण से पूर्ण हे शब्द रहित हैं, इन्द्रियादि चिन्हों से ग्रहण करने में अयोग्य है, निराकार है । टोकार्थ :- रागादि विकला रहित स्वसंवेदन ज्ञान से समुत्पन्न परमानंद रुप अन्नाकूलत्व सुस्थित, बास्तविक, सुखामृत जल के द्वारा पूर्ण कलश के समान सर्व प्रदेश में भरे हुए अवस्था को प्राप्त परम मुनियों से शुद्धात्मा का प्रत्यक्ष होता है उसी प्रकार अन्यों को शुद्धात्मा का प्रत्यक्षीकरण नहीं होता है। किंतु अनुमान लक्षण के द्वारा परोक्ष ज्ञान से व्यवहार नय से धूमय अग्नि का ज्ञान जैसे होता है उसी प्रकार आत्मा का परोक्ष ज्ञान परमयोगी ( ध्यानावस्थापन्न मुनि ) को छोड़कर यथा योग्य अन्यों को होता है । जैसे दृश्श्य पर्वतादि के ऊपर घूम अग्नि का साक्षात् दर्शन नहीं होता है परंतु बिना अग्नि से घूम नहीं होता है इस न्याय के अनुसार अनुमान से ज्ञात होता है। वहां पर अग्नि है इसी प्रकार गुरु के उपदेश से शास्त्राध्ययन, मनन, चिंतन, अनुप्रेक्षा से परम मुनि को छोड़कर अन्यों को अशुद्धात्मा का अनुमान से ज्ञान होता है । उपसंहारः F लहिऊणदेस संजय सयलंबा होइ सुरोत्तमोसग्गे । मोत्तूण सुहे रम्मे पुणो वि अवयर मणुयते ।। ५९६ ।। तत्य वि सुहाई मुसा दिक्ला गहिऊण भविय णिग्गंयो । सुक्काणं पाविय कम्मं हृणिऊण सिक ।। ५९७ ॥ I जो देश संयम को अर्थात श्रावक के व्रतों का पालन करता है अथवा मुनिधर्म को पालन करता है उस सातिशय पुण्य के कारण उत्तम स्वर्ग में जन्म लेता है वहां पर रम्य, मनोहर भोगों को भोगकर सुगुण समं नहि गन्धमस्ति न वीर्य समं प्रतापमस्थि । न रागसमानं बन्धनमस्ति न क्रोध समानं अनलमस्ति ॥ ७ ॥ विषयसमानं विषं मोह समानं रिपुः । कुभाव समानं हिंसा त्रैलोक्य मध्ये नहि ॥ ८ ॥
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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