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________________ टीकाकार का परिचय निशान आदि लवाजमा भेज दिया था, उनकी निषद्या बनाने के लिये स्टेट ने नदी के किनारे एक सुन्दर स्थान भी दिया है । ऑफिसर लोग नागरिक सब शवयात्रा के साथ थे। तथा स्टेट भर में सदा के लियं उस दिन की स्मृत्ति में राज्य छुट्टी रखने और किसी भी जीव की हिंसा नहीं होने देने की घोषणा सरकार ने कर दी थी। वह स्टेट की सराह नीय भक्ति का नमूना है। निषद्या स्थान पर कुआ, बाग धर्मशाला वन गई है, छतरी बन गई है और उस छतरी में उनके चरण कमल प्रतिष्ठित होकर स्थापन किये जा चुके है । उनके चरण कमलों की स्थापना स्वयं आचार्य श्री १०८ कुंथु पागर महाराज ने की थी। आचार्य श्री कुंथु सागर जी महाराज आचार्य श्रीं सुधर्म सागर जी को अपना विद्या गुरु मानते थे। तथा उन्होंने अपने समस्त स्वरचित संस्कृत ग्रंथों मे आचार्य सुधर्म सागर जी को अपना विद्या गुरु के नाम से सर्वत्र उल्लेख किया है । आचार्य सुधर्म सागर जी के गृहस्थावस्था के पुत्र वैद्य राज पं० जयकुमार जी आयुर्वेदाचार्य नागीर ( राजस्थान ) में सकुटुम्ब रहते हुए अपना रवतन्त्र बैद्य क व्यवसाय चला रहे है। ५-न्यायालंकार पं० मक्खनलालजी शास्त्री - आप संस्कृत के अद्वितीय विद्वान है । और हिन्दी भाषा के सामान्य लेखक और वक्ता है आपने देहली नगर मे आर्य समाज के साथ लगातार छह दिन तक शास्त्रार्थ कर बड़ी शानदार विजय प्राप्त की थी। उसी समय वहां के अग्रवाल खण्डेलवान पद्मावती पूरवाल आदि समस्त पंचायत ने तथा प्रान्त और दूर से आय हुए समस्त जैनियों ने मिलकर 'वादिभ केसरी' यह सुप्रसिद्ध उपाधि आपको प्रदान की थी। इसके सिवा न्यायालंकार विद्यावारिधि की उपाधियां भी आपको प्राप्त है । भा० दि० जैन महा सभा ने आपकी निःस्वार्थ अनुपम सेवा से प्रसन्न होकर धर्मवीर की मम्मान्य उपाधि प्रदान की है । इस समय आप' समस्त दि. जैन समाज में एक अच्छे माननीय विद्वान गिने जाते है । आपनें वर्षों तक उक्त महासभा के मुख पत्र माप्ताहिक जैन गजट की सम्पादक का उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य बड़ी
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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