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________________ टोकाकार का परिचय ली थी इसके एक वर्ष पीछे श्री कुंडलपुर क्षेत्र पर दशमी अनुमती विरत प्रतिमा ग्रहण की थी फिर अलीगढ मे क्षुल्लक दीक्षा धारण कर ली। तदनंतर प्रतापगढ़ में आपने श्री जैनेश्वरी दीक्षा ( मुनिपद ) धारण की थी। आप संस्कृत भाषा के उद्भट शास्त्री थे ही । साथ मे हिन्दी और गुजराती के भी प्रौढ लेखक थे । तथा प्रसिद्ध व्याख्याता भी थे । अपने चौबीस पाठ, दीपावली पूजन, आदि कविता मय नथ लिखे है। तथः सुर्यप्रकाश पुरुगर्थानुशामन आदि संस्कृत ग्रंथों की टीकाएं भी लिखी है उत्तमोत्तम उपदेशपूर्ण जीव कर्म विचार, यज्ञोपवीत संस्कार सदृशा अनेक ट्रक्ट भी लिखे है । कितनी हो लेखमालाए लिखा है और गुजराती भाषामे भी कितने ही ग्रंथ लिखे है । आप वैद्यक भी जानते थे । आप की लिखी एक नीतिवाश्यमाला नाम को पुस्तक मिली है जो बहुत ही उत्तम उपदेशों से पूर्ण है। उसमें आपने एक सदाचार नामकी पुस्तक का भी उल्लेख किया है । परन्तु वह हमारे देखने में नहीं आ सकी है। गृहस्थावस्था का अन्तिम जीवन आपने बम्बई में व्यतीत किया। श्री ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन को उन्नती के मूल कारण आप ही थे। श्री आचार्य संघ को उत्तर प्रांत में लाने का मुख्य प्रयत्न आपका ही था। इसलिये आप संघ के साथ हो लिये थे । और फिर संघ में ही रह गये थे। श्री जैनेश्वरी दीक्षा लेकर आपने कितने ही बडे काम किये थे । आपने नीमाङ गुजरात बागड मालवा आदि प्रांतों में विहार कर शास्त्रोक्त मार्ग का अनुपम प्रचार किया था । तथा साथ में चतुर्विशति तीर्थकर महास्तुती, सुधर्म ध्यान प्रदीप और मुधर्म श्रावकाचार ऐस सस्कृत भाषा में महाग्रंथों की रचना भी की थी । आपने कुलगढ़ में मुनि ऐलक क्षुल्लक भट्टारक ब्रह्मचारियों के मध्य श्रेष्ठ समाधिमरण पूर्वक पौष शुक्ला द्वादशी सोमबार विक्रम सं० १९९५ वे सन्ध्याकाल मे इस नश्वर शरीर का त्याग किया। आप की इस यात्रा के समय कुशालगड स्टंट ने अपना बैचड ध्वजा
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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