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के लिये और परंपरा से आत्मोत्थ सहज सरल अतींद्रिय के लि जाना मृत का आस्वादन के लिय १) आहार २) औषध ३) शास्त्र ४) । अभयदान शक्ति के अनुसार दान देता है । जो यथाशक्ति मान नहीं देता है बह ।। दाणं पूजा मुक्खं साक्य घम्मेण सावया तेण विणा " इस सूत्र के कारण श्रावक ही नहीं है। पुरुषार्थ सिद्धी उपाय में अध्यात्मिक महर्षि अमृतचंदजी कहते है ।
गृहमागताय गुणिने मधुकरवृत्या परान्न पीडयते । वितरति यो नाडतियये स कथं नहीं लोभवान भवति ।।
जो रत्नत्रय एवं मूल गुणादि से सहित और अन्य को पीडा नहीं देते हुए मधुमक्खी के समान जो आहार ग्रहण करते है उसी प्रकार महान गुण संपन्न महामुनि जब घर पर आते है । उनका जो श्रावक आहार। दान नहीं देते है वह कैसे लोभी नहीं है अर्थात वह निश्चय से महालोभी ! कंजूस है।
विष्णद सुपत्त वाणं विसेसतो होई भोग सग्गमही 1 णिवाण सुहं कमसो णिद्दिळ जिणरि चेहिं ।। १६ ।।
( रयणसार ) रवेत्तविसेस काले बविय सुधियं फलं जहां पिडलं 1 होई तहा तं जाणइ पत्तविसेसेसु वाण फलं ॥ १।1 इह णियसु सुबित्तबाज ओ बबई जिणुत्तसत्तरवेसेसु । सो तिहुवण रज्जफल भंजवि कल्लाण पत्रफलं ॥
जो भक्तिपूर्वक सुपात्र को दान देता है विशेष से उन्हे भोगभूमी । स्वर्गसुख मिलता है और क्रमशःपरम निर्वाण सुख की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार स्वयं जिनेन्द्र भगवान कहे है।
जैसे उत्तम खेत में बोया हुआ उत्तम बीज काल विसेस को प्राप्त होकर विपुल फल को देता है उसी प्रकार पात्र विषेस को दिया हुवा । बीज स्वरुप अल्प दान भी काल प्राप्त होने पर स्वर्ग मोक्ष रुपी विपुल फसल को प्राप्त करता है।
जो अपने न्यायपूर्वक उपार्जित धनरुपी बीज को जिनेन्द्र भगवान