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देदीप्यमान किरण समूह से जिन भवनों को विभूपित करनेवाले और कज्जल एवं कलुषता से रहित एमे रत्नदीपकों से इन प्रतिमाओं की जापू करते है।
वासिद विसंतरेहि कालागर पमूह विविह पूर्वहिं । परिमलिद मंदिरेहि महयंति जिणिव बिबाणि ।। ११० ।।
(तिलोयपण्णात्ति) देवगण मंदिर एवं दिमंडल को सुगन्धित करने वाले कालागरुः प्रभूति अनेक प्रकार के धूपों से जिनेन्द्र विम्बो की पूजा करते है।
वषखा दाडिम कबली गारंग य माहलिग चूदेहि । अण्णेहिं वि पक्केहि फलेहि पूंजति जिगणाहं ।। १११ ॥
दास्त्र, अनार, केला, नारंगी, मातुलिंग, आम तथा अन्य भी पके हुए फलों से वे जिननाथ की पूजा करते है।
हिस्सेण कम्मक्खणेक्क हे मण्णतया तत्थ जिणिव पूर्ण । सम्मत्त विरया कुवंति णिचं देवा महाणंस विसोहि पुब्बं ।२२८
(तिलोयपणति ) । वहांपर अविरत सम्यग्दृष्टी देव जिन पूजाको समस्त कर्मों के क्षय करने में एक अद्वितीय वारण समझकर नित्य ही महान अनंत गुणी विशुद्धिपूर्वक उसे करते है ।। २२८ अभिषेक पूजा का फल :
जलधारा णिक्खेवण पापम सोहणं हवे णियमं । चन्दनलेवेण परो जावई सोहाग संपण्णो ।। ४२३ ॥
(बसु श्रा. ) पूजनके समय नियम से जिन भगवान के आगे जलधारा के छोड नसे पाप रूपी मैल का संशोधन होता है। चन्दन रस के लेप से मनुष्य सौभाग्य से संपन्न होता है ।
जायद अक्खणिहि रयणसामिओ अक्लष्टही अक्खोहो । अक्लोण लाहिद जित्तो अबसय सोक्खं व पावे ।। ४८४ ॥
(वसु.)