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जो शक्ति भक्ति अनुसार देव पूजा करता है, मुनियों को दान देता है वह सम्यग्दृष्टी श्रावक धर्म को पालन करने वाला धर्मात्मा मोक्षमार्ग में रत है, निकट भविष्य में मोक्ष प्राप्त करने वाला है ।
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दाणु विष्णउ मुणिवर ण वि पूज्जिड जिणणाह । पंच ण वंदय परम गुरु किमु होसह शिवलाहु || (रमा प्रकाश )
आध्यात्मिक आचार्य योगीन्द्र देव बताते है, है भव्य तु मुनियों को भक्ति पूर्वक दान नहीं दिया, जिनेन्द्र भगवान की पूजा नहीं किया, पंत्र परम गुरुओं की सेवा - वंदना - भक्ति आदि नहीं किया तो किस प्रकार तुझे मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
देवपूजा
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पुण्णस्स कारणं फुड पढमं ता हवइ देव पूजाय । कायव्या भत्तीए सावय वग्गेण परमाए ।। ४२५ ।।
गुण्य प्राप्ति के लिये देवपूजा निश्चय से प्रथम कारण है इसलिये श्रावक वर्ग अतिशय भक्ति से प्रतिदिन देव पूजा करना चाहिये |
देव पूजा से अशुभ कर्मों का सुंदर एवं निर्जरा होती है. अतिशय आत्म विशुद्धि होती है, जिससे सम्यग्दर्शन विशुद्ध होता है और उससे सातिशय पुण्य बंध होता है, जो कि स्वर्ग मोक्ष का कारण है, इसलिये योग्य श्रावक मन-वचन-काय शुद्धि पूर्वक द्रव्य भावात्मक पूजा नित्य करनी चाहिये ।
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( भाव संग्रह )
नपुंसक
इह पश्लोग कुसल रहियो भोग रागे अणुस्तो ।
चचिह पुरुसाथ चिहोणो नपुंसक होई अष्णाजी ।। २३ ।।
सामान्य धम्मो
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रयणत्तयं य धम्मं अणेयंत सिवाय धम्मो ।
धम्मो वत्थु सहावी उत्तमवखमादी दस पिहो धम्मो ।। २४ ।।