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________________ मट्टारक कुमुदचन प्राजु में देखे पास जिनेंदा सांवरे गात सोहमनि मूरति, शोभित शीम फर्णेदा प्राजू।। कमठ महामद भजन रंजन, भविक चकोर सुचंदा । पाप तमोपह भुवन प्रकाणक उदित अनुप दिनेंदा ग्राजु।। भुविज-दिदिज पति दिनुज दिनेसर सेषित पद अरविन्या कहत कुमुदचन्द्र होत सबे सुख देखत वामानंदा 11अाजु।। कुमुदचन्द्र लोहण पार्श्वनाथ के बड़े भक्त थे। उन्होंने लोडण पार्श्वनाथ की विनती लिखने के अतिरिक्त दो पद भी लिखे हैं जिनमें लोडण पार्श्वनाथ की भक्ति करने में अपने पापको सौभाग्यशाली माना है एक पद में "वे अाज सबनि में हूं बड़ भागी” कहते हैं और हमने पद में गम भागनाथ के दर्शनासे गाने ज़म्म को सफल मान लेते हैं इसलिये वे कहते है “जनम सफल भयो, भयो सु फाजरे, तनकी तपस मेरी सब मेटी, देखत लोडण पास प्राज रे ।' भक्ति के रंग में रंग कर वे भगवान से कहते हैं कि यदि वे दीनदयाल कहते हैं तो उन जैसे दोन को क्यों नहीं उबारते हैं। कवि का जो तुम दीनदयाल कहावत" वाला पर अत्यधिक लोकप्रिय रहा तथा जन सामान्य उसे गाकर प्रभु भक्ति में अपने पापको समर्पित करता रहा । जब भक्तिरस में अोतप्रोत होने पर भी विघ्नों का नाश नहीं होने लगा तथा न मनोगत इच्छाए' पूरी होने लगी तो भगवान को भी उलाहना देने में वे पीछे नहीं रहे और उनसे स्पष्ट शब्दों में निम्न प्रार्थना करने लगे प्रभु मेरे तुम कुऐसी न चाहिये सघन विघन परत सेवकः क मौन घरी किन रहिये ।।प्रभु।। विघन-हरम सुख-करन राबगिकु, चित चिन्तामनि कहिए अपारण शरण अबन्धु बन्धु कृपासिन्धु को विरद निबहिये । प्रभु।। जो मनुष्य भव में प्राकर न तो प्रभु की भक्ति करने हैं और न प्रत उपवास पूजा पाठ करते हैं तथा कोई न पुण्य का काम करते हैं लेकिन जब वे मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं तो हृदय में बड़ा भारी पछतावा होता है और उनके मुख से निम्न शब्द निकल पड़ते है मैं तो नर भव बाधि गापायो न कियो तप जप प्रत विधि सुन्दर, काम भलो न कमायो । मैं तो।
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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