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भट्टारक रत्नकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
संवत सोल अठ्योतारए, मासा अषाढ धनसार । उजली बीज रलीया मणिए, अति भलो ते शशिवार लक्ष्मीचन्द्र पाटे निरमलाए, भभयचन्द्र मुनिराय । तस पटे प्रभयनन्दि गुरुए, रत्नकीरति सुभ काय कुमुदचन्द्र मन उजलेए, घोघा नगर मझारि ।
विवाहलो की पाण्डलिपियाँ राजस्थान के विभिन्न भण्डारों में उपलब्ध होती है।
(४) मेमिमाप का द्वारामासा
इसमें नेमिनाथ के विरह में राजुल' की तडपन का सुन्दर वर्णन मिलता है। बाहरमासा कवि की लघु कृति है जो १४ पद्यों में पूर्ण होती है।
(५) नेमीश्वर हमची
भट्टारक रत्नकीति के समान ही कुमुदचन्द्र भी नेमि राजुल की भक्ति में समर्पित थे इसलिये उन्होंने भी नेमि राजुल के जीवन पर विभिन्न कृतियां एवं पद लिखे है । हमची भी ऐसी ही रचना है जिसमें ८७ छन्दों में नेमिनाथ के जीव की मुख्य घटनाओं का वर्णन किया गया है। रचना की भाषा राजस्थानी है लेकिन उस पर महाराष्ट्री का प्रभाव है। पूरी रचना प्रकारों से युक्त है । हमची में राजुल की सुन्दरता, बरात की सजधज, विविध बाघ यन्त्रों का प्रयोग, तोरण द्वार से लोटने पर राजुल का विलाप नादि घटनामों का बहुत ही मार्मिक वर्णन मिलता है।
नेमिनाथ तोरण द्वार से लौट गये । राजुल विलाप करने लगी तथा मूच्छिल होकर गिर पड़ी । माता पिता ने बहुत समझाया लेकिन राजुल ने किसी की भी नहीं सुनी। आखिर पति ही तो स्त्री के जीवन में सब कुछ हैं इसी का एक वर्णन देखिये
बाडि बिना जिम बेनि न सोहे, अर्थ विना जिम वाणी । पंडित जिम सभा न सोह, कमल बिना जिम पाणी रे ॥ १२ ॥ राजा बिन जिम भूमि म सोहै, बिना जिय रजनी ।। पीउड बिना अबला न सोहे, सांभलि मेरी सजनी ॥ ८३ ।।
हमपी की पाण्डुलिपि ऋषभदेव के भट्टारकीय शास्त्र भण्डार के एक गुट के में संग्रहीत है।