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गधारक मुदमन
भट्टारक पद स्थापन के पश्चात् बारडोली नगर साहित्यिक, धार्मिक एवं माध्यात्मिक गतिविधियों का केन्द्र बन गया। कुम दचन्द्र की वाणी सुनने के लिये वहां धर्म प्रेमी समाज का जमघट रहता था। कभी तीर्थ यात्रा करने वालों का संघ उनका आशीर्वाद लेने पाता तो कभी कभी विभिन्न नगरों का समाज उन्हें सादर निमन्त्रण देने माता । कभी वे स्वयं ही संघ का नेतृत्व करते तथा तीर्थी की यात्रा कराने में सहयोग देते । संवत १६८२ में कुमुदचन्द्र संघ सहित घोषा नगर मामे जो उनके गुरु रत्नकीति का जन्म स्थान या । बारडोली वापिस लोटने पर श्रवकों ने उनका अभूतपूर्व स्वागत किया। इसी वर्ष उन्होंने गिरनार जाने वाले एक संघ का नेतृत्व किया था और उसमें अभूतपूर्व सफलता पाई थी।' साहित्य सेवा
कुमुदचन्द्र बड़े भारी साहित्यिक भट्टारक थे । साहित्य सजना में ये प्रधिक विश्वास करते थे। इसलिये भट्टारक पद के कम से अवकाश पाते ही वे काव्य रचना में लग जाते । इसलिये एक गीत मेंउन के लिये "अहनिशि छंद व्याकर्ण नाटिक भणे न्याय मागम अलंकार" लिखा गया है । कुमृदचन्द्र की अब तक जितनी रचनायें मिली है वे सब राजस्थानी भाषा की ही हैं। उनकी अब तक २८ छोटी बड़ी कृतियां एवं ३० से भी अधिक पद मिल चुके हैं। लेकिन शास्त्र भण्डारों की खोज पोने पर और भी रचनायें मिलने की प्राशा है। उनकी प्रमुख रचनात्रों के नाम निम्न प्रकार है :
१. भरत बाहुबलि छंद २. पन क्रिया विनती ३. ऋषभ विवाहलो ४. नेमिनाथ का द्वादशमासा ५. नेमिश्वर हमची ६. अण्यरतिगीत ७. हिन्दोलना गीत .. दशलक्षण धर्म प्रत गीत ६. अढाई गीत १०. व्यसन साप्त गीत ११. भरतेश्वरगीत
१. संवत सोल प्यासीये संवच्छर गिरनारि यात्रा कोषा। श्री कुमुषचंद्र गुरु नामि संधपति तिलक कहता ॥
गीत धर्मसागर हत