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________________ भट्टारक कमदचन्द्र [ ४७ ] कुमुदचन्द्र भट्टारक रलकीति के प्रमुख शिप्य थे। वे भट्टारक गादी पर रत्नकीति के द्वारा अभिषिक्त किये गये और बागड़ एवं गुजरात प्रदेश के धर्माधिकारो बन गये। भ, रलकति ने अपनी गायी की यशोगाथा वो चारों ओर फैला दिया था इसलिए तुमचा के भट्टारक बनते ही उनकी भी कीति चारों और फैलने लगी। जब वे भट्टारक बने तो युवा थे । शौन्दर्य उनके चरणों को चमता था। सरम्बनी को उन पर पहिले से ही कृपा धी। उन वाणी में नाकर्षण था इसलिये धे जन-जन के विशेष प्रिय बन गये और समाज पर उनका पूर्ण वर्चस्व रपापित हो गया। __कुमुदव का जन्म गोपुर ग्राम में हना था। पिता का नाम सदाफल एवं माता का नाम पदमाबाई था। वे मोदईश के सत्वे सपुत थे । उनका जन्म का नाम क्या था इसका कहीं उल्लेख नहीं मिलता लेकिन वे जन्म से ही होनहार थे युवावस्था के पूर्व ही उन्होंने संयम धारण कर लिया था। उन्होंने इन्द्रियों के नगर की उजाट केर वामदेव ापी नाग को महज के ही जीत लिया । अध्ययन को और उनकी प्रारम्भ में ही रुचि भी इनलिए वे गन दिन व्याकरण, नाटक, न्याय, मनमशारत्र, छंद शास्त्र एवं ग्रनकारों का अध्ययन किया करते थे। मोम्मटसार जैसे ग्रन्थों में उन्होंने विशेष अध्ययन किया था । गनविली गीतों में कुमुदचन्द्र का निम्न प्रकार गुणगान गाया गया है ... - --- - -- १. मोह वंश शृंगार शिरोमणि साह सदाफल तात रे जायो जतिबर जुग जयवन्तो पवमाबाई सोहात रे । २. बालपणे जिरणो संयम लिधो, धरोयो वेरग रे। इन्द्रिय ग्राम उजारमा हेला, जोत्यो मन नागरे । ३. अनिश छन्द व्याकरण नाटिक भरणे न्याय आगम अलंकार । याबोगण केशरी विरुव पास रे सरस्वती पच्छ सिणगार रे । गीत धर्म सागर कृत
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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