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________________ भट्टारक रस्मकीति एवं कुमुवचन्द्र : भक्तिरय ए कृतित्व रत्नकीति का जोरदार स्वागत के लिये कवि गणेश जन सामान्य को प्रेरित करता हैं। एक अन्य पद में मट्टारक रलकीति स्वान गलिक द्वारा सम्मानित हुए थे ऐसा भी उल्लेज मिलता है। रत्ननीति गोरबन्दर गये । घोघा नगर में तो वे जाते ही रहते थे। बारडोली उनका केन्द्र था । बागड प्रदेश के सागवाडा गलियाकोट एवं बांसवाडा आदि में भी बराबर जाते रहते थे। प्रतिष्ठा वधान रत्नकोति ने कितने ही विधान एवं प्रतिष्ठाए सम्पन्न करवायी थी। पंचकल्याणको में वे स्वयं प्रतिष्ठाचार्य बनते और प्रतिष्ठानों का संचालन करते थे । उनके द्वारा सम्पन्न तीन प्रतिष्ठानों का वर्णन मिलता है जिनके माध्यम से वे तत्कालीन समाज में धार्मिक भावना जाग्रत किया करते थे। सबसे पहिले उन्होंने दाद्नगर में संवत १६३६ में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सम्पन्न करवायी। संयत १६४३ में बारडोली नगर में ही बिम्ब प्रतिष्ठा का प्रायोजन सम्पन्न करवाया । नगर मेंचारों प्रकार के संध का मिलन हया । भट्टारक रत्नकोति के परामणीनुसार कंकोली। निमन्त्रण पत्र) लिखे गये जिन्हें Tiवों में एवं नगरों में भेजा गया । विशाल मडप बनाया गया तथा प्रतिष्ठा महोत्सव में प्रकुरारोपणा, जलयात्रा. आदि विविध त्रियाए सम्पन्न हुई । पंच कल्याणक प्रतिष्ठा समाप्ति पर प्रतिष्ठानमारकों के रलकीति ने तिलक किया उनके साथ तेजबाई, जमल, मेघाई, १. कला महोतरी कोडामणो रे, कमल बदन करपाल रे । गाय नायक गुग्ग प्रागलो रे, रत्नकीरति विबुध विशाल रे ॥ मादो रे मामिनी गजगामिनी रे, स्वामि जी वारिण विख्यात रे । अभयंनद पर फेज दिनकरु रे, धन एहना मात ने तात रे ॥ २. लक्षण बत्तीस सकल अगि बहोतरि, खांन मलिक दिये मानजे । गोरगीत पृष्ठ संख्या १९५ । ३. मांगसीर सुदो पंचमी दिने, कुकम चित्रि लखाय । देस देस पठावे पंडत, मावे सज्ज बचे । विध प्रतिष्ठा जोष जाये पुण्य तस वर कंद ।।
SR No.090103
Book TitleBhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Story
File Size4 MB
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